ऑन द स्पॉट बड़ी बोल सबसे अलग 

ध्यान खींचने वाले: Selfie के दीवाने, या सोशल मीडिया के जोकर?

ओमप्रकाश चौधरी व्यंग्य कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर वक्त खुद को लाइमलाइट में रखने का हुनर जानते हैं। अगर वो सोने जाएं तो भी कैमरे की फ्लैश में झलकने की कोशिश करते हैं। फिर चाहे उनका खाना हो, उनका डॉग हो, या फिर उनका वो नया चश्मा जो शायद किसी और ने पहना भी न हो- सबकी “अवधि” अपने इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर देखने के लिए तैयार होती है। अगर ध्यान नहीं मिल रहा तो घबराएं नहीं, तुरंत एक सेल्फी के साथ फ्लैश मारो, और जरा कैप्शन में डाल…

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लापरवाही करने में भी लापरवाही करने वाले: ध्यान दें- इसमें भी परफेक्शन की जरूरत है

व्यंग्य मुझे याद है, बचपन में जब टीचर कहते थे, “लापरवाही मत करो,” तो लगता था कि ये भी कोई सलाह है? कौन होता है ऐसा जो लापरवाही करने में लापरवाही करे? पर, जब सामना तो समझ आया कि इस देश में ऐसे कई कलाकार हैं, जो लापरवाही करने में भी मास्टर हैं। लापरवाही करना एक कला है, और उसमें महारथ हासिल करना… बस, यह तो हर किसी के बस की बात नहीं। मसलन, एक सज्जन हैं, जिनका नाम हम प्रकाश रख देते हैं (वो खुद भी अपना नाम भूल…

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डिजिटल युग में सही या गलत की बात नहीं: जिसमें ज्यादा लाइक और कमेंट, वही असली सच

व्यंग्य आजकल के दौर में सच और झूठ का भेद मिट चुका है, जैसे चाय और समोसे का बिना तला मिलन। सोशल मीडिया पर कुछ भी डाल दो, वायरल हो जाता है। चाहे आपकी बिल्ली ने गलती से कुर्सी से छलांग लगा दी हो या फिर आपने बेमौसम बारिश की भविष्यवाणी कर दी हो- सब वायरल है। अब, पहले लोग अपनी काबिलियत के दम पर नाम कमाते थे, और आजकल? बस एक अजीबो-गरीब डांस कर लो या बिना बात की बात पर भड़क जाओ- लाखों व्यूज हाजिर। कभी-कभी तो ऐसा…

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फूड ब्लॉगर: खाने के नाम पर कैमरा उठाने वाले नए युग के संत, इनको चाहिए- रफेक्ट एंगल

व्यंग्य आजकल की दुनिया में खाने की थाली में पहला निवाला लेने से पहले कैमरे की क्लिक सुनाई दे, तो समझ जाइए कि आप किसी फूड ब्लॉगर की संगत में हैं। इन फूड ब्लॉगरों के लिए खाना किसी मंदिर का प्रसाद नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम की सामग्री है। चाहे वो 20 रुपये का समोसा हो या 2000 रुपये का पिज्जा, इनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है- “परफेक्ट एंगल”। थाली में खाना कम, तस्वीरें ज्यादा फूड ब्लॉगरों का यह गुण है कि वे हर भोजन को इतने कोण से देखते हैं, जितने…

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पेट से परे: जिंदगी में दो चीजें कभी खत्म नहीं होनी चाहिए, एक भूख और दूसरा खाना

ओम प्रकाश चौधरी हमारे समाज में ऐसे लोग आपको अक्सर मिल जाएंगे, जिनका पेट शायद किसी सामान्य मानव शरीर का हिस्सा नहीं, बल्कि किसी गहरे कुएं जैसा होता है। इन्हें देखकर हमेशा यही लगता है कि भगवान ने इन्हें पेट नहीं, एक अंतहीन गोदाम दे दिया हो, जिसमें कितना भी सामान भर दो, कभी ‘पूर्ण’ का बोर्ड नहीं लगेगा। अक्सर ऐसे लोग दावतों और शादी-ब्याह में मिलते हैं। जैसे ही ये हॉल में कदम रखते हैं, खाना खुद ही अलर्ट मोड में आ जाता है—”भाई, तैयार हो जाओ, अब हमारी…

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मीठे संसार में जीना भी कला: जब मीठे की बात आए तो दिमाग में घंटी बजनी चाहिए- ज्यादा मीठा, ज्यादा मुसीबत

व्यंग्य भाई साहब, कहते हैं कि जिन्दगी में मिठास होनी चाहिए, लेकिन अगर ये मिठास गुलाब जामुन की शक्ल में दिन-रात प्लेट में हो तो समझिए कि आप सिर्फ जिंदगी में नहीं, डायबिटीज के दरवाजे पर भी दस्तक दे रहे हैं। अब हमारी मौसी जी को ही देख लीजिए, वो हर चीज में मिठास ढूंढती हैं। चाय में दो चम्मच चीनी हो या सुबह के पराठे पर छिड़का हुआ शक्कर, बिना मीठा उनकी सुबह नहीं होती। और परिणाम? उनकी सुबह अब इंसुलिन की सुई से होती है। अब ये मीठे…

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आराम के शहंशाह: ओलंपिक में आराम करने की प्रतियोगिता होती, तो ये बिना कुछ किए गोल्ड मेडल जीत जाते

व्यंग्य ज्यादा आराम करने वाले लोग एक अद्भुत प्रजाति के होते हैं, जिन्हें देखकर वैज्ञानिक भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि इनकी ऊर्जा कहां जाती है। ये वो लोग होते हैं, जिनका हर वक्त का लक्ष्य होता है- “मैं क्यों चलूं, जब मैं आराम से लेट सकता हूं?” ये लोग आराम के शहंशाह होते हैं। इन्हें सोफे से उठाना इतना कठिन होता है, जितना ट्रेन को पटरी से खींचकर सड़क पर दौड़ाना। अगर आपको किसी आरामप्रिय व्यक्ति से मिलना है, तो बस टीवी के सामने पड़े सोफे के नीचे…

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नॉनवेज व्रतधारी: त्योहारों पर पवित्र, बाकी दिन बकरे के दुश्मन

व्यंग्य हमारे समाज में एक अलग ही प्रजाति पाई जाती है जिन्हें हम “नॉनवेज व्रतधारी” कह सकते हैं। ये लोग अपने आप को आधे धार्मिक और आधे मांस-प्रेमी साबित करने की कला में माहिर होते हैं। इनके लिए सप्ताह के एक-दो दिन और त्योहार ‘पुण्य’ कमाने के दिन होते हैं, और बाकी दिन बकरे, मुर्गे और मछली को निशाना बनाने का समय। इनका तर्क सीधा और सरल है- “शुक्रवार को मटन नहीं, पूजा होगी… लेकिन शनिवार को चिकन तंदूरी चाहिए।” ऐसा लगता है मानो भगवान और मुर्गे ने कोई खास…

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गई भैंस पानी में: जाने के मायने बदले, यहां है भैंस और इंसान की दुर्दशा का आधुनिक चित्रण

व्यंग्य भैंस अब भी भैंस है, पर इंसान? लगता है इंसान को भैंसों से भी ज्यादा बदलने की जरूरत है। पुराने जमाने में जब किसी काम में गड़बड़ होती थी, तो बड़े-बूढ़े एक कहावत कहते थे – “गई भैंस पानी में!” यानी समझ लो कि काम खराब हो गया। लेकिन अब? भैंसों का पानी में जाना तो एक अलग ही ट्रेंड बन चुका है। आजकल, भैंसें न केवल पानी में जा रही हैं, बल्कि उनका हॉट टब और स्विमिंग पूल का भी सपना पूरा हो रहा है। इंसान भले ही…

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बात कहूं मैं खरी: Facebook पर हुई दोस्ती ने बनाया रिश्तों का नया मॉडल, लाइक से लेकर ब्‍लॉक तक का सफर

व्यंग्य सोशल मीडिया के इस युग में दोस्ती का परिभाषा भी बदल गई है। पहले जहां दोस्ती गली के नुक्कड़ या कॉलेज कैंटीन में होती थी, वहीं अब यह “फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट” से शुरू होकर “लाइक” और “कमेंट” पर टिकी होती है। ताजा मामला मेरे मोल्ले वाले मोहन जी और शर्माइन जी का है, जिनकी दोस्ती फेसबुक पर एक आम पोस्ट से शुरू हुई, लेकिन अब रिश्तों का ड्रामा “रिलेशनशिप स्टेटस” से होते हुए “ब्‍लॉक” पर खत्म हो गया। फ्रेंड रिक्वेस्ट से “फ्रेंडशिप” तक मोहन जी ने जब पहली बार…

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