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शारदीय नवरात्र 2024: पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना, मां की पूजा करने वाला संपूर्ण सृष्टि संचालित कर सकता है

पंडित लोकनाथ शास्त्री

वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में पहले नवरात्र के दिन होती है। शैलपुत्री अपने अस्त्र त्रिशूल की भांति हमारे त्रीलक्ष्य (धर्म, अर्थ और मोक्ष) के साथ मनुष्य के मूलाधार चक्र पर सक्रिय बल है।

मूलाधार में पूर्व जन्मों के कर्म और समस्त अच्छे-बुरे अनुभव संचित रहते हैं। यह चक्र कर्म सिद्धांत के अनुसार यह चक्र प्राणी का प्रारब्ध निर्धारित करता है, जो अनुत्रिक के आधार में स्थित तंत्र और योग साधना की चक्र व्यवस्था का प्रथम चक्र है।

यही चक्र पशु और मनुष्य के बीच में लकीर खींचता है। यह मानव के अचेतन मन से जुड़ा है। इस चक्र का सांकेतिक प्रतीक चार दल का कमल अंतःकरण यानी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार द्योतक हैं।

ऐसा है मां का स्वरूप


शैलपुत्री नंदी बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिव का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल जो धर्म, अर्थ और मोक्ष के द्वारा संतुलन का प्रतीक है, शैलपुत्री के लक्ष्य को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करता है।

बाएं हाथ में सुशोभित कमल-पुष्प कीचड़ यानी स्थूल जगत में रहकर उससे परे रहने का संकेत देता है। मनुष्य में प्रभु की अपार शक्ति समाहित है और शैलपुत्री उसका व्यक्त संकेत हैं। देह में यह शक्ति इस चक्र के आवरण में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रही है।

ऐसी है मां शैलपुत्री की शक्ति


कभी प्रजापति दक्ष की कन्या सती के रूप में प्रकट शैलपुत्री मूलाधार मस्तिष्क से होते हुए सीधे ब्रह्मांड का प्रथम संपर्क सूत्र हैं। यदि देह में शैलपुत्री को जगा लिया जाए, तो संपूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करने वाली शक्ति शनैः शनैः देह में प्रकट होने लगती हैं। फलस्वरूप व्यक्ति विराट ऊर्जा में समा कर मानव से महामानव के रूप में तब्दील हो जाता है।

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