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कालरात्रि माता: नवरात्रि के सातवें दिन देवी के भयंकर रूप की पूजा का महत्व, इस पुष्प को अर्पित करें

पंडित लोकनाथ शास्त्री

वाराणसी: देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से कालरात्रि माता का स्थान सातवां है, जिन्हें नवरात्र के सातवें दिन श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है। कालरात्रि का यह नाम उनके भयंकर स्वरूप से उत्पन्न हुआ है, जिसमें उनका वर्ण काजल के समान काला है। पुराणों के अनुसार, शुंभ-निशुंभ और उसकी सेना को देखकर देवी के क्रोध में आने पर उनका श्यामल स्वरूप प्रकट हुआ, जिससे देवी कालरात्रि का उदय हुआ।

माता कालरात्रि का स्वरूप और शक्ति

पुराणों में देवी कालरात्रि को चार भुजाओं वाला बताया गया है। उनकी दाहिनी ओर की ऊपरी भुजा वरदान देने वाली है, और नीचली भुजा अभय प्रदान करती है। बाईं ओर की भुजाओं में माता खड्ग और मूसल धारण करती हैं। माता के बाल खुले हुए हैं, और उनकी गले की विद्युत माला से बिजली चमकने जैसी आभा प्रकट होती है। क्रोध में देवी की नासिका से अग्नि निकलती है और उनका वाहन गर्दभ (गधा) है।

देवी कालरात्रि को क्यों कहा जाता है शुभंकरी?

कालरात्रि माता का भयंकर रूप देखकर असुर और नकारात्मक शक्तियां भयभीत हो जाती हैं, लेकिन माता अपने भक्तों पर अत्यधिक कृपा करती हैं, जिससे उन्हें शुभंकरी कहा जाता है। उनके भयावह रूप के बावजूद भक्तों के लिए वे ममतामयी और कल्याणकारी हैं।

चामुंडा देवी के रूप में माता का गौरव

देवी भागवत पुराण के अनुसार, देवी कालरात्रि ने युद्ध में चंड-मुंड नामक असुरों का वध किया। उनके इस अदम्य पराक्रम के कारण देवी को चामुंडा के नाम से भी पुकारा गया। इस घटना ने देवी के शक्ति स्वरूप को और अधिक प्रतिष्ठित किया।

देवी कालरात्रि की साधना से मिलने वाले लाभ

देवी कालरात्रि का पिंगला नाड़ी पर अधिकार है और उनकी साधना से भक्तों को तमाम सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उनकी उपासना से भविष्य को देखने की क्षमता का विकास होता है और मन से भय का नाश होता है। देवी अपने भक्तों को भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं।

देवी कालरात्रि की पूजा विधि और प्रसाद

नवरात्र के सातवें दिन देवी को खीर और ऋतु फल का भोग लगाना चाहिए। संध्या काल में माता को खिचड़ी अर्पित की जाती है। पूजा से पहले देवी का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए:

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।”

माता कालरात्रि का प्रिय पुष्प

देवी कालरात्रि की पूजा में लाल गुड़हल के फूल विशेष प्रिय होते हैं। यदि उपलब्ध हो तो 108 गुड़हल के फूलों की माला बनाकर माता को अर्पित करना चाहिए, जिससे देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

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