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प्रभाव और दुष्प्रभाव: जब शब्द भी बोरियत के बिना बात करने लगें

आइए, आज हम बात करते हैं दो सबसे प्यारे और थोड़े-से सस्पेंस वाले शब्दों पर – प्रभाव और दुष्प्रभाव। ये दोनों शब्द ऐसे हैं जैसे शादी में मिठाई और नमकीन – एक अच्छा, दूसरा थोड़ा खट्टा, लेकिन दोनों बिना एक-दूसरे के अधूरे!

प्रभाव: वह स्वीट स्पॉट


यह वह शब्द है जो आपको हमेशा अपने साथ अच्छा महसूस कराता है, जैसे “आपका असर सब पर अच्छा है।” वाह! इससे तो आपका मन खुश हो जाता है। कोई भी चीज़ जब आपके जीवन में “प्रभाव” डालती है, तो बस मानिए, वह सकारात्मक होने का वादा करती है। “प्रभाव” का मतलब है – सब कुछ एकदम ठीक ठाक और सेहतमंद। जैसे अंजीर खाया तो पेट खुश, दिल खुश, त्वचा खुश… और आप भी खुश, क्योंकि प्रभाव हमेशा अच्छा होता है।

दुष्प्रभाव: रियलिटी चेक


अब बात करते हैं हमारे अगले प्यारे दोस्त दुष्प्रभाव की। ये वही शब्द है, जो कहीं न कहीं आपकी उम्मीदों का खून कर देता है। यह न केवल आपको चौंका सकता है, बल्कि आपकी दिमागी स्थिति को भी थोड़ा गड़बड़ कर सकता है। जैसे ही आप दुष्प्रभाव सुनते हैं, दिमाग में तुरंत अलार्म बजने लगता है – “कुछ गलत होने वाला है!” ये ऐसा है जैसे शादी के पहले सब कुछ पिघला-पिघला के मीठा था, और अब अचानक मिठाई का पैकेट खुला और उसमें से नमकीन निकल आया। दुष्प्रभाव वही है जो सब कुछ अच्छा चलने के बावजूद एक कदम पीछे खड़ा होकर कहे, “ठीक है, पर मुझे गड़बड़ करनी है!”

प्रभाव और दुष्प्रभाव का अंतर


तो अब जब ये दोनों शब्द आमने-सामने खड़े होते हैं, तो एक बात समझिए – प्रभाव हमेशा कहता है, “सब कुछ बढ़िया है, चिंता मत करो!”, जबकि दुष्प्रभाव कहता है, “मुझे पता था कि कुछ गड़बड़ होनी चाहिए थी!”

दोनों का असर


जहां एक ओर प्रभाव आपको लुभाता है, वहीं दुष्प्रभाव अपने गमगीन तरीके से आपको गाइड करता है कि “कुछ तो गलत होगा!” लेकिन दोनों का अपना महत्व है। असर तो दोनों ही डालते हैं, बस फर्क इतना है कि एक अच्छा असर दिखाता है और दूसरा बुरा असर।

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