डिजिटल युग में सही या गलत की बात नहीं: जिसमें ज्यादा लाइक और कमेंट, वही असली सच
व्यंग्य
आजकल के दौर में सच और झूठ का भेद मिट चुका है, जैसे चाय और समोसे का बिना तला मिलन। सोशल मीडिया पर कुछ भी डाल दो, वायरल हो जाता है। चाहे आपकी बिल्ली ने गलती से कुर्सी से छलांग लगा दी हो या फिर आपने बेमौसम बारिश की भविष्यवाणी कर दी हो- सब वायरल है।
अब, पहले लोग अपनी काबिलियत के दम पर नाम कमाते थे, और आजकल? बस एक अजीबो-गरीब डांस कर लो या बिना बात की बात पर भड़क जाओ- लाखों व्यूज हाजिर। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि अगर किसी ने गलती से ‘फेसबुक’ को ‘फेसवॉश’ लिख दिया, तो लोग उसे भी ‘टिप्स’ समझकर फॉलो कर लेंगे।
इंसानियत का स्तर तो देखो, किसी का झूठा दावा भी अब ‘ब्रेकिंग न्यूज’ बन जाता है। एक बार एक महाशय ने दावा किया कि उन्होंने चांद पर होटल खोल दिया, और अगले दिन उनकी बुकिंग्स फुल हो गईं। मतलब अब लोगों को इतना जल्दी यकीन हो जाता है कि क्या कहें?
असली हंसी तो तब आती है जब कोई खबर फैलती है कि ‘टमाटर खाने से वजन बढ़ता है,’ और फिर लोग टमाटर से डरकर उसे दुश्मन समझने लगते हैं। भई, अब खाने की जगह टमाटर पर लेबल भी लगाने का समय आ गया है- “यह टमाटर आपका वजन नहीं बढ़ाएगा, कृपया इसे खाएं।”
अंत में, यही कहा जा सकता है कि इस डिजिटल युग में सही या गलत की बात नहीं रही, बस किसमें ज्यादा ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ हैं, वही असली सच है।