तेजी दिखाने वाले धीमे लोग: ये वाली प्रजाति सबसे अलग, बातों में ‘रॉकेट’, काम में ‘कछुआ’
व्यंग्य
तेजी दिखाने वाले धीमे लोगों की एक अलग ही प्रजाति होती है। ये वो लोग होते हैं, जो बातों में तो ‘रॉकेट’ होते हैं, लेकिन काम में ‘कछुआ’।
चाहे बस पकड़नी हो, या फिर ऑफिस की मीटिंग में पहुंचना हो, ये लोग ऐसे फूर्ती से निकलते हैं, जैसे दुनिया का सारा काम इन्हीं पर टिका हो। मगर, असलियत में ये आलस्य की ऐसी मिसाल होते हैं, जो ‘आज का काम कल पर’ छोड़ने में विश्वास रखते हैं।
घर में मां ने कहा, “बेटा, सब्जी लेने जाओ,” तो ऐसे दौड़ते हैं जैसे ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने जा रहे हों। रास्ते में हर दुकान पर रुकते हैं, दो दोस्तों से मिलते हैं, और अंत में शाम को लौटते हैं- सब्जी के बजाय ‘समोसे’ लेकर। फिर बहाना बनाते हैं, “सब्जी की दुकान तो बंद थी।”
ऑफिस में भी ये महारथी होते हैं। फाइल हाथ में लेकर ऐसे घूमते हैं, जैसे कोई गुप्त मिशन पर हों। लेकिन काम? उसे धीमी गति से करते हैं, ताकि एक ही फाइल दिन भर साथ दे।
और जब बॉस पूछता है, “काम हुआ?” तो ये चेहरे पर एक गंभीरता लाकर कहते हैं, “जी, कर ही रहा हूं… बस थोड़ा सा बचा है।” वो ‘थोड़ा सा’ कितना ‘थोड़ा’ होता है, ये तो समय भी नहीं बता पाता।
इनकी खासियत ये है कि खुद को सबसे ‘तेज’ मानते हैं। जब कोई पूछे कि तुम इतना धीमे क्यों हो, तो बड़ी चालाकी से जवाब मिलेगा, “मैं काम में क्वालिटी लाता हूं, जल्दी का काम शैतान का होता है।” मानो इनकी क्वालिटी सोने से भी ज्यादा कीमती हो।
तेजी दिखाने वाले धीमे लोग असल में जिंदगी की उस कला में माहिर होते हैं, जहां कुछ न करते हुए भी ऐसा दिखाते हैं कि वे बहुत व्यस्त हैं। ऐसे लोग साबित कर देते हैं कि जिंदगी में तेज भागना जरूरी नहीं।