पर्दे के पीछे के खिलाड़ी: ऐसे अज्ञात नायक जो बिना क्रेडिट के सामने वाले को चमका देते हैं
व्यंग्य
कहते हैं कि हर बड़ा आदमी तभी बड़ा होता है, जब उसके पीछे कोई पर्दे के पीछे का खिलाड़ी हो। वैसे पर्दे के पीछे का खिलाड़ी सिर्फ राजनीति या खेल तक सीमित नहीं है। घर से लेकर ऑफिस तक हर जगह ये अज्ञात नायक होते हैं, जो बिना किसी क्रेडिट के अपने हुनर से सामने वाले को चमका देते हैं।
हमारे मोहल्ले में भी एक पर्दे के पीछे का खिलाड़ी है, नाम है- छोड़िए नाम में क्या रखा है। वैसे तो लगता है कि ये अज्ञात नायक छोटे-मोटे काम के काबिल होंगे, लेकिन जनाब, काम उनके बिना कोई हो ही नहीं पाता। उनके बिना मोहल्ले की कोई शादी हो ही नहीं सकती। हलवाई से लेकर डीजे वाले तक के फोन नंबर उनके पास होते हैं, और “भईया जरा स्टेज के पीछे देख लेना” कहकर वे शादी की पूरी व्यवस्था सम्हाल लेते हैं। बस जब बारात आती है, भईया को कोई स्टेज पर नहीं देखता।
शादी का स्टेज छोड़िए, मोहल्ले में क्रिकेट मैच हो या गणेश उत्सव, भईया वहां भी पर्दे के पीछे का सुपरस्टार होते हैं। विकेट की व्यवस्था से लेकर “चार नंबर वाले पांडाल में लाइट नहीं है” तक की समस्या हल करने का जिम्मा उन्हीं का होता है। फिर जब इनाम बाँटने की बारी आती है, तो माइक पकड़े नेता जी और फोटो खिंचवाने वाले खिलाड़ियों की भीड़ में भईया को कोई नहीं पूछता।
अब ऑफिस की बात कर लें। हर ऑफिस में एक अज्ञात नायक होता है, जो बॉस के PPT बनाने से लेकर चाय ऑर्डर करने तक सब कुछ चुपचाप कर देता है। लेकिन जब प्रमोशन की बारी आती है, तब बॉस उस “क्रिएटिव” बंदे को आगे कर देता है, जिसने भईया से ही आइडिया चुराया था।
भईया की तरह हमारे देश के पर्दे के पीछे के खिलाड़ियों की किस्मत ऐसी ही होती है। वे खुद पर्दे के पीछे रहकर तमाम खेल खेलते हैं और सामने वाले को महान बना देते हैं। पर असली खिलाड़ी वही होता है जो अपने हिस्से की तालियों का इंतजार नहीं करता। क्योंकि उसे पता है कि असली शो तो पर्दे के पीछे ही चलता है।
नोट- यहां वाले भईया को वहां वाले भईया से बिल्कुल मत मिलाइएगा। दोनों भईया अलग-अलग हैं। और मिल भी देंगे तो अपना क्या जाता है?