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फॉरवर्डेड मैसेज: एक नई संचार संस्कृति का उदय, बचने का तरीका जानना है?

व्यंग्य

आजकल के डिजिटल युग में फॉरवर्डेड मैसेज का चलन तेजी से बढ़ रहा है। क्या यह एक नई संचार संस्कृति है, या सिर्फ समय की बर्बादी?

फॉरवर्डेड मैसेज, संदेश या महामारी?

जैसे ही हम अपने स्मार्टफोन्स को खोलते हैं, फॉरवर्डेड मैसेज का एक सैलाब हमारे सामने होता है। कभी कोई प्यारा सा क्यूट किट्टन का वीडियो, तो कभी उस अनजान शख्स की भक्ति की बातें। हर कोई अपने दोस्तों को कुछ न कुछ फॉरवर्ड करने में लगा रहता है, जैसे कि यह कोई अनिवार्य काम हो।

बातें जो कभी न खत्म हों

अगर आप सोचते हैं कि फॉरवर्डेड मैसेज में गहराई है, तो आप गलत हैं। ये तो बस एक शब्दों का जाल है जिसमें सच्चाई का नामोनिशान नहीं। उदाहरण के लिए, जब आपके दोस्त ने आपको ‘आपका दिन शुभ हो’ की जगह ‘यहां एक मजेदार वीडियो है’ भेजा, तो क्या आप उस वीडियो को देखेंगे या फिर उसके लिए आशीर्वाद देंगे?

फॉरवर्डेड मैसेज का गुणात्मक मूल्य

फॉरवर्डेड मैसेज के गुणात्मक मूल्य की चर्चा करते हुए, हम सभी यह स्वीकार करते हैं कि इनमें से कई तो मजाक ही हैं। क्या आपने कभी किसी वीडियो को देखा है, जिसमें कोई भूत प्रेत का खेल दिखाया गया हो? यह देखने के बाद आप सोचने लगते हैं कि ‘क्या मैं भी ऐसे ही दिखता हूं?’ और फिर उस भूत से भागने की योजना बनाने लगते हैं।

सुरक्षा या तनाव का एक नया स्तर

फॉरवर्डेड मैसेज की एक और खासियत है – यह आपकी मानसिक स्वास्थ्य पर एक अद्भुत असर डालता है। जब आपका दोस्त आपको ‘अगर आप इसे 10 लोगों को फॉरवर्ड नहीं करते, तो आप 10 साल के लिए नकारात्मकता का शिकार होंगे’ जैसा संदेश भेजता है, तो आपकी सुबह की चाय की खुशी एक पल में गायब हो जाती है।

फॉरवर्डेड मैसेज का संतुलन

तो, फॉरवर्डेड मैसेज की इस दुनिया में क्या किया जाए? क्या हमें इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर देना चाहिए, या फिर सिर्फ सही संदेशों का चयन करना चाहिए?

एक बात तय है- अगर आप इन संदेशों से बचना चाहते हैं तो शायद आपको अपने दोस्तों की सूची को संकुचित करने की जरूरत है। आखिरकार, ज्ञान और मजाक का सही संतुलन ही हमें इस फॉरवर्डेड मैसेज की महामारी से बचा सकता है।


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