रामनगर की रामलीला में अयोध्याकांड शुरू: कैकेयी का तिरिया चरित्र, छाया संकट का बादल, आरती के साथ कोप भवन की लीला को विश्राम दिया गया
वाराणसी, रामनगर: रामलीला के आठवें दिन, कैकेयी ने तिरिया चरित्र का ऐसा प्रदर्शन किया कि अयोध्या के राजमहल में खुशी की लहरें एक पल में उदासी में बदल गईं। कल तक अयोध्या का राजमहल मंगल गीतों से गूंज रहा था, लेकिन आज कैकेयी की मांग ने सब कुछ बदल दिया। राजा दशरथ को अपने पुत्र श्रीराम के लिए चौदह वर्ष का वनवास पर मजबूर कर दिया। यह क्षण केवल दशरथ के लिए नहीं, बल्कि पूरी अयोध्या के लिए एक अपार दुःख का समय बन गया।
अयोध्या कांड की शुरुआत
कैकेयी के कोप भवन में हुए इस लीला ने अयोध्या में दुखों का नया अध्याय शुरू किया। महाराज दशरथ, जब आईने के सामने अपने मुकुट को ठीक कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि उनके बाल सफेद हो रहे हैं। यह दृश्य उन्हें राम को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से सलाह लेकर राम के राजतिलक की तैयारियों में जुट जाते हैं।
इसी बीच, देवताओं के राजा इन्द्र चिंतित हो जाते हैं। वे माता सरस्वती के पास पहुंचते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि कुछ ऐसा करें जिससे राम को राजपद छोड़कर वनवास जाना पड़े। सरस्वती, कैकेयी की दासी मंथरा की बुद्धि फेर देती हैं, और मंथरा अपनी चालाकियों से कैकेयी को राजा दशरथ के दो वचनों का स्मरण कराती है।
कैकेयी का निर्णय
कैकेयी कोप भवन में जाकर राजा से राम के लिए वनवास और भरत के लिए राज मांग लेती है। राजा दशरथ की प्रतिक्रिया उस क्षण को अभागा बना देती है। जैसे ही उन्होंने कैकेयी की मांग सुनी, वे धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े। राजा की छाती पीटने की आवाजें राजमहल में गूंजने लगीं।
जब सुमंत ने राजा की स्थिति को देखा, तो वे परेशान होकर कोप भवन पहुंचे। कैकेयी ने उनसे राम को बुलाने को कहा। जब राम कोप भवन में पहुंचे, तो कैकेयी ने उन्हें अपने वरदान के बारे में बताया। राम, जिनकी वीरता और धर्म की रक्षा की प्रतिज्ञा है, सहर्ष वन जाने के लिए तैयार हो गए। दशरथ ने उन्हें गले से लगा लिया, लेकिन बोल नहीं सके।
अवसाद की गहराई
इस दृश्य ने अयोध्या को एक गहरी उदासी में डूबो दिया। राम के बिना अयोध्या की जीवनधारा थम गई। कौशल्या ने राम को हृदय से लगा कर चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया और श्रीराम ने वन जाने की अनुमति मांगी। उसी समय सीता ने राम के चरण पकड़कर उन्हें प्रणाम किया, और उन्हें अचल सुहागिन होने का आशीर्वाद दिया।
इस प्रकार, आरती के साथ कोप भवन की लीला को विश्राम दिया गया। कैकेयी के तिरिया चरित्र ने अयोध्या को एक ऐसी दुविधा में डाल दिया, जहां से हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था। रामनगर की रामलीला ने एक बार फिर से दर्शकों को पौराणिकता की गहराई में डुबो दिया, जहां धर्म और न्याय की अद्भुत कहानी का बखान किया गया।