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फुटपाथ और सड़क के अतिक्रमण: एक अनिवार्य अनुष्ठान, सिर्फ पुलिस की नजरों से बचना जरूरी

व्यंग्य

महानगरों के सबसे महत्वपूर्ण तीज-त्योहारों में से एक है ‘अतिक्रमण पर्व’, जिसमें हर नागरिक अपनी क्षमताओं का परिचय देते हुए सड़क और फुटपाथ पर कब्जा जमाने का अद्वितीय अवसर पाता है। फुटपाथ और सड़क पर अतिक्रमण एक ऐसी सामाजिक परंपरा बन चुकी है, जिसे निभाना अब हर नागरिक का कर्तव्य मान लिया गया है।

फुटपाथ पर कब्जा जमाने की कला में मास्टर बनने के लिए, आपको बस थोड़ा सा हुनर चाहिए-एक पुरानी कार, कुछ अस्थायी दुकानें, और ज़रा सी चाय की दुकान की बुनियादी सामग्री। यही नहीं, सड़क पर अतिक्रमण भी अपने आप में एक अद्वितीय कला है- सिर्फ ट्रैफिक पुलिस की निगाहों से बचना जरूरी है, जो कभी-कभी हमें अपने इस ‘आत्म-निर्मित’ साम्राज्य को बनाए रखने का प्रेरणादायक संदेश देती है।

हमारे शहरी नायकों का अद्भुत विश्वास है कि फुटपाथ तो बस “गाड़ी खड़ी करने के लिए सबसे अच्छा स्थान” है, जबकि सड़क तो चलने-फिरने के बजाय, खुले स्थान का अधिकतम उपयोग करने के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा, सड़क के बीचों-बीच दुकान लगाने से न केवल नए व्यापारिक अवसर मिलते हैं, बल्कि यातायात जाम के अद्वितीय दृश्य भी देखने को मिलते हैं जिसे देखकर नागरिकों का मनोबल ऊंचा रहता है।

हमारे यह अतिक्रमण-प्रिय नागरिक अपने अतिक्रमण के कारनामों को एक वीरता की तरह मानते हैं। आखिरकार, फुटपाथ और सड़क पर कब्जा करना ही तो एक तरह की आस्था की परीक्षा है। जब सरकार की ओर से प्रगति की बात होती है, तो इन्हें लगता है कि उनके अतिक्रमण ही असली प्रगति की धारा को बहा रहे हैं।

इसलिए, अगले बार जब आप फुटपाथ पर चलें या सड़क पर ट्रैफिक देखें, तो समझिए कि यह सिर्फ आपकी दैनिक यात्रा नहीं, बल्कि अतिक्रमण के महान पर्व की एक अनिवार्य अनुष्ठान है।

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