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लुप्त होंती परंपराएं: बैलों से किसानी का दौर अंतिम कगार पर, ट्रैक्टर और मशीनों ने ली जगह

सतीश कुमार

गांव आजकल

गांवों में बैलों और कोल्हू की कमी के कारण किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

गांवों में पुरानी परंपराएं और रीति-रिवाज आज भी जीवंत हैं, लेकिन समय के साथ-साथ ये परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। ऐसी ही एक परंपरा है बैलों से किसानी करने की, जो अब अंतिम कगार पर है।

बैलों से किसानी करने की परंपरा

पुराने समय में गांवों में किसानी का मुख्य साधन बैल होते थे। बैलों की मदद से किसान अपने खेतों में फसलें उगाते थे और अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। बैलों के साथ-साथ कोल्हू भी एक महत्वपूर्ण साधन था, जिसका उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता था।

ट्रैक्टर और मशीनों ने बैलों की जगह ले ली

लेकिन आज के समय में बैलों से किसानी करने की परंपरा लगभग खत्म हो चुकी है। ट्रैक्टर और अन्य मशीनों ने बैलों की जगह ले ली है और कोल्हू भी अब अंतिम कगार पर है।

गांवों में बैलों की कमी के कारण किसानों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है

गांवों में बैलों की कमी के कारण किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत पड़ती है, जो कि बहुत महंगा सौदा है। इसके अलावा, ट्रैक्टर और अन्य मशीनों का उपयोग करने से किसानों को अधिक लाभ नहीं होता है, क्योंकि इन मशीनों का उपयोग करने से खेतों की उर्वरता कम होती है।

कोल्हू भी अब अंतिम कगार पर

कोल्हू भी अब अंतिम कगार पर है, क्योंकि अब तेल निकालने के लिए अन्य मशीनों का उपयोग किया जाता है। कोल्हू का उपयोग करने से तेल की गुणवत्ता अच्छी होती है, लेकिन अब कोल्हू का उपयोग करने वाले लोग बहुत कम हैं।

पुरानी परंपराएं और रीति-रिवाज लुप्त होते जा रहे हैं

गांवों में बैलों और कोल्हू की कमी के कारण पुरानी परंपराएं और रीति-रिवाज लुप्त होते जा रहे हैं। गांवों में अब नई पीढ़ी के लोग बैलों और कोल्हू के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।

गांवों में किसानी के काम में कम रुचि

गांवों में बैलों और कोल्हू की कमी के कारण किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इसके अलावा, गांवों में अब नई पीढ़ी के लोग किसानी के काम में कम रुचि लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि किसानी का काम अब पुराना हो गया है।

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