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संतोष की असली परिभाषा: जान रहे हैं सच में अमीर कौन है? पढ़िए एक प्रेरणादायक कहानी

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम राघव था। राघव अपनी मेहनत और ईमानदारी के लिए पूरे गांव में जाना जाता था, लेकिन उसकी एक खासियत और थी – वह हर चीज़ में संतोष करता था। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह हमेशा खुश रहता था और दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहता था।

वहीं, उसी गांव में अर्जुन नाम का एक अमीर आदमी भी रहता था। अर्जुन के पास हर सुख-सुविधा थी – बड़ा घर, खेती की ढेर सारी जमीन, और कई नौकर-चाकर। लेकिन बावजूद इसके, वह कभी खुश नहीं रहता था। उसे हमेशा लगता था कि उसके पास कुछ कमी है, और वह हर समय अपने जीवन में और अधिक पाने की कोशिश करता रहता था।

एक दिन अर्जुन ने राघव से पूछा, “तुम हमेशा इतने खुश कैसे रहते हो? तुम्हारे पास तो ज्यादा संपत्ति भी नहीं है, फिर भी तुम्हारे चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है।”

राघव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “खुशी संपत्ति या बाहरी चीज़ों से नहीं आती, अर्जुन भाई। खुशी भीतर से आती है, और इसका आधार है संतोष। मैं जो भी करता हूँ, उसमें संतोष पाता हूँ। यह मेरी सबसे बड़ी संपत्ति है।”

अर्जुन को राघव की बात समझ नहीं आई। उसे लगता था कि संतोष तभी संभव है जब उसके पास सारी इच्छाएँ पूरी हों। वह सोचता रहा कि शायद राघव की ज़िंदगी बहुत सरल है, इसलिए वह खुश रहता है। लेकिन राघव के लिए यह संतोष का राज़ जानने की इच्छा अर्जुन के मन में गहरी होती गई।

कुछ दिन बाद गांव में अकाल पड़ा। अर्जुन की सारी फसलें बर्बाद हो गईं और उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। उसके पास अब उतनी संपत्ति भी नहीं बची थी जितनी पहले थी। इस स्थिति में अर्जुन टूट गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करेगा।

एक दिन, अर्जुन निराश होकर राघव के पास गया और अपनी सारी परेशानियाँ बताईं। राघव ने बड़े प्यार से अर्जुन को समझाया, “भाई, जीवन में चीज़ें हमेशा हमारे हिसाब से नहीं चलतीं। लेकिन अगर हम जो है उसी में संतोष करना सीख लें, तो कोई भी परिस्थिति हमें दुखी नहीं कर सकती। संपत्ति कभी स्थायी नहीं होती, लेकिन संतोष स्थायी है।”

अर्जुन को अब समझ में आया कि संतोष का असली मतलब क्या है। उसने महसूस किया कि वह जितनी संपत्ति और सुख-सुविधाएं भी हासिल कर ले, अगर उसे भीतर से संतोष नहीं है, तो वह कभी खुश नहीं हो सकता। अर्जुन ने राघव की बात मानी और अपनी बची हुई संपत्ति से ही संतोष करने का निश्चय किया।

धीरे-धीरे अर्जुन ने जीवन में संतोष करना सीख लिया और उसे सच्ची खुशी का एहसास हुआ। उसने पाया कि सच्ची खुशी बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि मन की शांति और संतोष में है।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि संतोष ही सच्ची दौलत है। जो व्यक्ति अपने पास जो है उसी में खुश रहता है, वही असली अमीर है।

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