भ्रम पालने की महान कला: आइए महारत हासिल करें, दुनिया को वास्तविकता से चकित करें
व्यंग्य
भ्रम पालना एक ऐसी कला है, जिसमें महारत हासिल कर लो तो आपकी जिंदगी शानदार ढंग से “हवाई किले” में बदल सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको किसी सच्चाई से कभी टकराने की जरूरत ही नहीं पड़ती। और हम भारतीय तो इस कला में जन्मजात विशेषज्ञ होते हैं।
बनारस के एक मोहल्ले के शर्मा जी को ही ले लीजिए। उन्हें पूरा यकीन है कि उनके बेटे में एपीजे अब्दुल कलाम बनने की सारी संभावनाएं हैं, जबकि बेचारा बेटा अपनी 12वीं की परीक्षा में सिर्फ दया के नंबरों से पास हुआ है। पर शर्मा जी का भ्रम अटूट है। उनकी उम्मीदें, बेटे की “अनदेखी प्रतिभा” पर ऐसे टिकी हैं जैसे कच्चे धागे से लटकी किसी जर्जर बाल्टी में सारा पानी भरा हो!
अब बात करें हमारे नौकरशाहों की। उन्हें पक्का भ्रम है कि उनके कागजी विकास से देश एक दिन सुपरपावर बन जाएगा। फाइलों में तो फ्लाईओवर तैयार, रोड चमचमाती, और गांव में सबको रोजगार मिल चुका है। जबकि असल में, वह फाइल भी शायद सड़क पर पड़े गड्ढे में खो चुकी होती है। लेकिन क्या फर्क पड़ता है, उनके भ्रम के सामने तो कागज़ पर बना विकास भी असली ही लगता है।
सिर्फ आम लोग ही नहीं, हमारे नेताओं के भ्रम तो और भी ऊंचे होते हैं। उन्हें भ्रम होता है कि वे वाकई जनता के लिए काम कर रहे हैं। भाषण देते वक्त ऐसा भाव रखते हैं, जैसे कल ही भ्रष्टाचार मिटा देंगे और सबको रोजगार देंगे। जनता भी उन्हें सुनते-सुनते ऐसे भ्रम में रहती है कि शायद अगली बार कुछ सुधार हो जाए। और फिर हर चुनाव के बाद वही पुरानी कहानी- लेकिन जनता के इस भ्रम का भी कोई तोड़ नहीं है।
भ्रम पालने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप हर सुबह नई उम्मीद के साथ जागते हैं। जैसे आपके पड़ोस के वर्मा जी को भ्रम है कि उनकी नौकरी लगने वाली है। अब पिछले चार साल से वो “लगने वाली है” की स्थिति में अटके हुए हैं, लेकिन इस उम्मीद के सहारे उनकी सुबहें चमकदार रहती हैं।
तो गुरु, अगर आपको भी सच्चाई से भागना हो, तो एक बढ़िया भ्रम पाल लीजिए। न केवल जिंदगी आसान लगेगी, बल्कि दूसरों के सामने आप एकदम “पॉजिटिव थिंकर” भी बन जाएंगे। आखिर, भ्रम पालना कोई छोटी मोटी कला नहीं, इसे पालने में दिल और दिमाग दोनों की मेहनत लगती है। तो आइए, इस महान कला में महारत हासिल करें, और दुनिया को अपनी “वास्तविकता” से चकित करें।