नॉनवेज व्रतधारी: त्योहारों पर पवित्र, बाकी दिन बकरे के दुश्मन
व्यंग्य
हमारे समाज में एक अलग ही प्रजाति पाई जाती है जिन्हें हम “नॉनवेज व्रतधारी” कह सकते हैं। ये लोग अपने आप को आधे धार्मिक और आधे मांस-प्रेमी साबित करने की कला में माहिर होते हैं। इनके लिए सप्ताह के एक-दो दिन और त्योहार ‘पुण्य’ कमाने के दिन होते हैं, और बाकी दिन बकरे, मुर्गे और मछली को निशाना बनाने का समय।
इनका तर्क सीधा और सरल है- “शुक्रवार को मटन नहीं, पूजा होगी… लेकिन शनिवार को चिकन तंदूरी चाहिए।” ऐसा लगता है मानो भगवान और मुर्गे ने कोई खास समझौता कर रखा हो कि दो दिन इन्हें छोड़ दिया जाए, और बाकी दिनों में इन्हें प्रेम से थाली में सजाया जाए।
इनका पसंदीदा त्योहार आता है तो अचानक शाकाहारी बनने का उत्साह छा जाता है। कुछ त्योहार पर “सात्विक भोजन” करने का दिखावा बड़े जोश से किया जाता है।
लेकिन जैसे ही त्योहार खत्म होता है, तुरंत मटन करी की सुगंध इनके नथुनों में तैरने लगती है। त्योहारों के दौरान शाकाहार मानो इनके लिए ‘अल्पविराम’ है, और उसके बाद नॉनवेज खाकर ‘पूर्णविराम’ लगाना इनकी खासियत होती है।
इनका व्रत इतना दिलचस्प होता है कि अगर आप पूछें कि “भाई, त्योहार के बाद तो अभी सच्चा भक्त बना था, फिर ये चिकन क्यों?” जवाब मिलेगा, “अरे, भक्ति अपने समय पर और बटर चिकन अपने समय पर।” एकदम धार्मिक संतुलन बनाए रखते हैं।
असली मजा तब आता है जब इनसे पूछा जाए, “क्यों, मुर्गे और बकरे को भी कभी व्रत में शामिल करोगे?” तो इनके चेहरे पर ऐसा भाव आता है, जैसे आपने उनसे कोई खतरनाक सवाल पूछ लिया हो। इनके लिए मांस खाना एक नियम है, पर सिर्फ ‘व्रत’ वाले दिनों में ही ब्रेक। बाकी दिन? ‘भोजन’ का असली मतलब तो वही है।
तो, नॉनवेज व्रतधारी वो कलाकार हैं जो शाकाहार और मांसाहार के बीच ऐसा संतुलन बनाए रखते हैं, जैसे व्रत के दिन उनकी आत्मा शुद्ध हो जाती है, लेकिन बाकी दिन उनका पेट बकरे की आत्मा पर विजय प्राप्त करता है।