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रामनगर की रामलीला: दूलह श्रीरघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं, अयोध्या बनी बाराती, देवलोक धरती पर उतरा

वाराणसी, रामनगर: दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं। गावति गीत सबै मिलि सुंदरि, वेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥ राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं। बातें सबैं सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥

दरअसल, आज रामनगर में छठे दिन की रामलीला ने पूरे क्षेत्र में अद्भुत उत्सव का माहौल बना दिया। जैसे ही चारों भाई दूल्हा बने, जनकपुर और अयोध्या के बीच का आनंद अद्वितीय था। सीता-राम के विवाह की तैयारियों ने जनकपुर को खुशियों से सराबोर कर दिया, जबकि अयोध्या के बारातियों में उमंग की लहर थी।

इस विशेष दिन का आरंभ राजा जनक के दूतों के अयोध्या पहुंचने से हुआ, जिन्होंने राजा दशरथ को जनक जी का निमंत्रण पत्र सौंपा। पत्र पढ़ते ही राजा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने गुरु वशिष्ठ, भरत, और रानियों को इस आमंत्रण की जानकारी दी, जिसमें धनुष यज्ञ के आयोजन का भी उल्लेख था। राजा दशरथ ने तुरंत भरत को बारात की तैयारियों का आदेश दिया।

हाथी, घोड़े, रथ और गाजे-बाजे के साथ जब बारात जनकपुर पहुंची, तो राजा जनक ने अतिथियों का स्वागत किया और उन्हें जनवासे में ठहराया। राम और लक्ष्मण जब दूल्हा बनकर घोड़े पर सवार होकर पहुंचे, तो सारा वातावरण आनंदमय हो गया। वहां उपस्थित महिलाएं उनका परिछन करने लगीं।

विवाह के लिए आवश्यक सभी तैयारी हो चुकी थीं। ब्रह्मा जी ने लग्न पत्रिका नारदजी के माध्यम से जनक के पास भेजी। विवाह का मुहूर्त निकट आते ही जनक ने राजा दशरथ को मंडप में बुलाने के लिए दूत भेजे। गुरु वशिष्ठ के साथ सभी मंडप की ओर बढ़े, और तब देवताओं ने पुष्प वर्षा की। अचानक शिव जी और पार्वती जी बैल पर सवार होकर आए, डमरू बजाते हुए। चारों ओर हर-हर महादेव का उद्घोष गूंज उठा, जिससे वातावरण शिवमय हो गया।

भगवान शिव ने इस पवित्र विवाह को जगत के लिए कल्याणकारी बताया। सभी देवता श्री राम की जय जयकार करने लगे। गुरु वशिष्ठ ने कन्या को विवाह मंडप में बुलाने के लिए कहा। मंडप में सभी ने अपने आसन ग्रहण किए, और जनक की पत्नी सुनयना ने चांदी के कलश में श्रीराम का पांव धोकर उन्हें पांच बार नेत्रों से लगाया।

विधि विधान के अनुसार सबसे पहले श्रीराम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। इसके बाद मांडवी, उर्मिला, और श्रुतकीर्ति का विवाह भी हुआ। राजा जनक ने राजा दशरथ से कहा, “हम सभी प्रकार से संतुष्ट हैं।” विवाह की रस्में पूरी होने के बाद, सखियां दूल्हा-दुल्हन को कोहबर में ले गईं, जहां राम की आरती उतारी गई।

अंत में वर को जनवासे में भेज दिया गया, और देवता जय जयकार करते हुए इस दिव्य लीला का समापन हुआ। इस अद्भुत आयोजन ने रामनगर की रामलीला को एक बार फिर से सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित किया, जिसमें परंपरा, भक्ति, और आनंद का अनुपम मेल देखा गया।

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