रामनगर की रामलीला: मेघनादने ब्रह्मशक्ति का प्रयोग कर लक्ष्मण को किया मूर्छित, संजीवनी न पहचानने पर हनुमान पूरा पहाड़ ले आए
रामनगर, वाराणसी: रावण तो पूरी तरह अंहकार में डूबा हुआ था। इतना अहंकार कि पत्नी का कहा भी नही माना। भाई ने मना किया तो लंका से ही निकाल दिया। युद्ध टालने का श्रीराम का आखिरी प्रयास भी जब असफल रहा तो सिर्फ और सिर्फ एक ही विकल्प बचा था वह था युद्ध। तो शुरू हो ही गया वह युद्ध जो धर्म की अधर्म पर श्रेष्ठता के लिए लड़ा जाना था। वह युद्ध जो सत्य की असत्य पर विजय के लिए लड़ा जाना था।
रामलीला के बाइसवें दिन श्रीराम लंका के चारों द्वारों को घेरने के लिए जामवंत को रणनीति बनाने को कहते हैं। जामवंत नील को पूर्वी द्वार, अंगद को दक्षिणी द्वार, हनुमान उत्तरी द्वार तथा श्रीराम लक्ष्मण को मध्य में लड़ने की रणनीति बनाते हैं। राम की सेना लंका के चारों द्वारों को घेर लेती है। यह देखकर रावण कहता है कि सभी काल की प्रेरणा से यहां आए हैं।
दोनों सेनाओं में युद्ध शुरू हो जाता है। बहुत से राक्षस और वानर मारे जाते हैं। माल्यवान भी रावण को समझाता है तो रावण उसे भी आंखों के सामने से भागने को कहता है। लंका में हाहाकार मचने पर मेघनाथ रणभूमि पहुंचता है। वह वानरों पर कहर बनकर टूट पड़ता है। लक्ष्मण युद्ध करने आते हैं तब उसने शक्ति का प्रयोग करके लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया। लक्ष्मण भूमि पर गिर पड़े।
राम की सेना में शोक फैल गया। विभीषण की सलाह पर हनुमान सुषेन वैद्य को बुलाकर लाते हैं। वह बताते हैं कि धौलागिरी पर्वत पर मिलने वाली संजीवनी बूटी से ही लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। हनुमान रास्ते में रावण द्वारा भेजे गए कालनेमि से निपट कर धौलगिरि पर्वत पहुंचते हैं। बूटी को न पहचान पाने के कारण पूरा पहाड़ उखाड़ लाते हैं।
अयोध्या के ऊपर से जाते समय भरत राक्षस समझ बाण मार नीचे गिरा देते हैं। हनुमान के मुंह से राम राम सुनकर भरत को पश्चात्ताप होता है। हनुमान उन्हें सारी कहानी सुनाते हैं। इधर लक्ष्मण के वियोग में श्रीराम विलाप कर रहे होते हैं तभी हनुमान वहां पहुंच जाते हैं। संजीवनी बूटी से सुषेण वैद्य लक्ष्मण की मूर्छा समाप्त कर देते हैं। लक्ष्मण उठ कर श्रीराम के गले लग जाते हैं। यहीं पर आज की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया जाता है।