शारदीय नवरात्रि 2024: पांचवे दिन होती है स्कंदमाता की पूजा, दिव्यता और आत्मसंयम की प्रेरणा देती हैं माता
पंडित लोकनाथ शास्त्री
वाराणसी: नवरात्रि के पांचवें दिन, स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो दिव्यता का पोषण करने वाली देवी मानी जाती हैं। उन्हें भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है, जो देवताओं की सेनाओं के सेनापति हैं। स्कंदमाता देवी, शक्ति और आत्मसंयम का प्रतीक हैं, जो साधकों को उनके मार्ग पर दया और दृढ़ता से मार्गदर्शन करती हैं।
स्कंदमाता की दिव्यता और शक्ति: स्कंदमाता देवी को सौम्य और दयालु माँ के रूप में दर्शाया गया है, जो अपनी कोमलता से साधकों को पोषित करती हैं। उनके हाथों में कमल है, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक है, जबकि उनकी गोद में बैठे भगवान कार्तिकेय शक्ति और युद्ध का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्कंदमाता के रूप में देवी दुर्गा का यह रूप आत्म-संयम और अनुशासन की ऊर्जा को दर्शाता है, जो एक योद्धा के कठोर जीवन का प्रतीक है।
क्रोध और आत्मसंयम की शिक्षा: स्कंदमाता के माध्यम से हमें यह सिखाया जाता है कि क्रोध और आक्रामकता को सही दिशा में इस्तेमाल करना चाहिए। मानव शरीर में, स्कंदमाता विशुद्ध चक्र (गले) में निवास करती हैं। जब यह चक्र संतुलित होता है, तो हम स्पष्ट रूप से संवाद कर पाते हैं, सत्य बोलते हैं और दूसरों की बात सुनने में सक्षम होते हैं। लेकिन असंतुलित होने पर यह आक्रामकता या संवादहीनता को जन्म देता है।
स्कंदमाता के स्वरूप का महत्व
- शिशु स्कंद: अपनी गोद में भगवान कार्तिकेय को लिए हुए, वह एक शक्तिशाली और अद्वितीय माँ के रूप में मानी जाती हैं।
- कमल: उनके हाथों में कमल, शुभता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
- आशीर्वाद: वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए एक हाथ से संकेत करती हैं।
- सिंह: वह धर्म के प्रतीक सिंह पर सवार हैं।
साधकों के लिए मार्गदर्शन: स्कंदमाता की उपासना से साधक को आत्म-संयम, क्रोध पर नियंत्रण और दिव्यता का अनुभव होता है। नवरात्रि के इस दिन, उनके मंत्र का जाप करने से साधकों को आत्म-संयम, अनुशासन, और दिव्यता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो साधना को पूर्णता की ओर ले जाता है।