चाय की चुस्की और भौकाल की पिचकारी: बनारस की हर गली में ‘बाबा’ और हर चौराहे पर ‘गुरु’
व्यंग्य
वाराणसी: बनारस की गलियों का अपना अलग ही अंदाज है। यहां के लोग जैसे हवा में जीते हैं, वैसे ही उनकी बातें भी हवा-हवाई होती हैं। चाहे मौसम कैसा भी हो, यहां के लोगों का भौकाल हमेशा टॉप गियर में रहता है। बनारस में अगर किसी से पूछा जाए, “का हो, का हाल बा?” तो जवाब मिलेगा, “अरे हमरे रहते सब बढ़िया बा!” यही वो बनारसी भौकाल है, जो गंगा के किनारे से लेकर अस्सी की चाय तक हर जगह नजर आता है।
चाय की चुस्की और भौकाल की पिचकारी
अब बनारस की चाय की बात हो और भौकाल न दिखे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। अस्सी पर बैठकर चाय की प्याली पकड़े, चाहे मामला देश की राजनीति का हो या क्रिकेट मैच का, यहां हर कोई एक्सपर्ट है। इनका भौकाल तो ऐसा है कि अगर इन्हें 5 मिनट और मिल जाए, तो देश की सारी समस्याएं यही हल कर दें। कोई कहेगा, “भइया, अगर हम प्रधानमंत्री होईते न, त देशवा में क्रांति ला देते!” अब बताओ, क्रांति चाय की दुकान से नहीं, तो और कहां से आएगी?
गाड़ी छोटी, भौकाल बड़ा
बनारस में आपको सड़क पर दौड़ती स्कूटी जरूर मिलेगी, जिस पर चार लोग बैठे होंगे, लेकिन भौकाल ऐसा कि लोग समझें कि ये किसी बड़े नेता का काफिला है। हेलमेट? अरे भइया, भौकाल वाले लोग हेलमेट पहनते हैं? यहां तो लोग इतने सशक्त हैं कि पुलिस वाला भी पूछे तो कह देते हैं, “बाबूजी, हम सेफ्टी में बिस्वास रखते हैं।”
घाट की हवा और भौकाल का असर
बनारस के घाटों पर जो शांति है, वो तो दुनिया जानती है, लेकिन उस शांति के पीछे भी भौकाल छिपा है। कोई भी बनारसी आपको ऐसे ज्ञान देगा, जैसे अभी-अभी बाबा विश्वनाथ के साथ चाय पीकर आ रहे हों। अगर आपने पूछा कि “भैया, गंगा का पानी इतना साफ कैसे है?” तो जवाब मिलेगा, “अरे, इ पवित्रता है, जेकरा के समझे में थोड़ा टाइम लगता है।” और आप सोचते रह जाएंगे कि आखिर इसमें कौन सा रहस्य है।
अरे भाई, यहां तो ‘हम सब जानते हैं’ का भौकाल है!
बनारसी भौकाल सिर्फ बातें ही नहीं, भावनाओं में भी है। यहां के लोग हर बात को दिल से लेते हैं, फिर चाहे वह पड़ोसी की कुर्सी पर बैठने का मामला हो या राजनीति पर डिस्कशन का। हर बनारसी के पास हर मुद्दे का समाधान है, बस आपसे पूछे जाने की देर है। गाड़ी का इंजन खराब है? “अरे छोड़, हम देख लेंगे!” घर का नल टपक रहा है? “अरे हम ठीके कर देंगे!”
कुल मिलाकर: बनारस का भौकाल अटल है
बनारस का भौकाल ऐसा है कि यहां के लोग भले ही दुनिया की सैर न करें, लेकिन दुनिया बनारस के भौकाल को जरूर जानती है। हर गली, हर नुक्कड़ और हर चाय की दुकान पर आपको कोई न कोई ऐसा मिलेगा जो खुद को यहां का ‘बाबा’ समझता हो और हर दूसरे को ‘गुरु’ कहकर संबोधित करता हो।
कहना गलत नहीं होगा कि बनारस की यही बेफिक्री और भौकाल यहां के लोगों को दुनिया से अलग पहचान दिलाती है। यहां हर कोई राजा है, और भौकाल? वो तो बनारसी स्वैग का हिस्सा है।