अब नहीं आता बचपन वाला रविवार: तब और अब में अंतर, बदलते समय के साथ गायब होती मासूमियत
कभी रविवार का दिन बच्चों के लिए खास होता था। सुबह उठते ही दूरदर्शन पर आने वाले कार्टून और फिल्मों का इंतजार, दोस्तों के साथ गली-मोहल्लों में क्रिकेट या पिट्ठू खेलना, और घर में बिना किसी चिंता के मस्ती करना, यह सब बचपन के रविवार का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। लेकिन आज, बदलते समय और तकनीक ने बच्चों के इस बेफिक्र रविवार को बदल कर रख दिया है।
वो रविवार जो अब नहीं आता
बचपन के पुराने रविवारों में बच्चों की दुनिया बेहद सरल और खुशहाल हुआ करती थी। कोई स्मार्टफोन या वीडियो गेम नहीं, बस दोस्तों के साथ खुली हवा में खेलने का मज़ा। खेल के दौरान हुई छोटी-मोटी चोटें और धूल-गर्द में लिपटे बच्चे, जिन्हें घर में डांट के साथ नहाने का आदेश मिलता, फिर भी चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान। टीवी पर आने वाले ‘रंगोली’ और ‘महाभारत’ जैसे कार्यक्रम हर परिवार के लिए आनंद का कारण होते थे।
आधुनिक तकनीक ने छीनी मासूमियत
आज के बच्चे स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स और वीडियो गेम्स में इतने उलझ चुके हैं कि उनका बचपन कहीं खोता जा रहा है। अब न वो गली क्रिकेट दिखता है और न ही दोस्तों के साथ धूल में खेलना। बच्चों के रविवार अब नेटफ्लिक्स और यूट्यूब पर गुजरते हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग ने उनके खेल और सामाजिक संबंधों की जगह ले ली है। पहले जहां बच्चे शाम को पार्क में दोस्ती की बातें किया करते थे, आज वे अपनी दुनिया को एक स्क्रीन में सीमित कर चुके हैं।
अभिभावकों की बदलती भूमिका
बचपन का रविवार अब सिर्फ बच्चों का नहीं रहा। आज के अभिभावक भी बच्चों के साथ अपने फोन और लैपटॉप में व्यस्त रहते हैं। पारिवारिक बातचीत कम हो गई है, और परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी डिजिटल दुनिया में डूबे रहते हैं। जहां पहले पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म देखना या बाहर घूमने जाना आम बात थी, अब सभी अपने-अपने गैजेट्स में खोए रहते हैं।
क्या हम खो रहे हैं कुछ?
बच्चों के लिए आउटडोर खेलों की जगह जब से तकनीकी मनोरंजन ने ले ली है, तब से न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है, बल्कि सामाजिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है। अब वे दोस्ती की गहराई को वैसा नहीं समझ पाते जैसा पहले के बच्चे समझते थे। एक तरह से, बचपन की वह मासूमियत, वह आनंद, अब कहीं पीछे छूट गई है।
रविवार को फिर से बचपन की तरह बनाएं
आज की दौड़-धूप भरी जिंदगी में बच्चों को फिर से उनका खोया हुआ बचपन लौटाना चुनौती जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को आउटडोर खेलों के लिए प्रोत्साहित करें, परिवार के साथ समय बिताएं और डिजिटल डिवाइस के इस्तेमाल को सीमित करें। रविवार के दिन को फिर से मस्ती और बेफिक्री से भरपूर बनाने की जरूरत है, ताकि बच्चे भी उस आनंद को महसूस कर सकें, जो एक समय हम सब ने किया था।
रविवार केवल एक दिन नहीं था, यह बचपन का वो दिन था जब सब कुछ थोड़ा और रंगीन, थोड़ा और हल्का लगता था। शायद अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को भी उस रविवार का स्वाद चखाएं, जो कभी हमारा हुआ करता था।