मोबाइल से चिपके रहने वालों की कथा: इनमें से आपसे कौन वाला टकराया, बिल्कुल यही होता है या कुछ अलग?
व्यंग्य
परिचय- मोबाइल फोन, यह नन्हा जादुई यंत्र, जिसने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है। आजकल के लोग मोबाइल के बिना ऐसे हैं जैसे बिना आलू के समोसा। चलिए, एक मजेदार नजर डालते हैं उन लोगों पर, जो मोबाइल के साथ चिपके रहने में पूरी तरह से माहिर हैं।
दृश्य 1: सुबह की शुरुआत
सुबह होती है और सबसे पहले एक व्यक्ति उठता है। आलसी आंखें खोलते हुए, वह बिस्तर से उठने के बजाय अपने मोबाइल को खोजता है। “कहां है मेरा मोबाइल? आज तो सुबह की चाय के बाद इसकी बर्थडे पार्टी होगी।” और चाय के बजाय, वह फेसबुक पर अपने दोस्तों की “सुबह-सुबह की गहरी सोच” पर कमेंट कर रहा होता है।
दृश्य 2: नाश्ता बनाना
नाश्ते की बारी आती है। पत्नी चिल्लाती है, “अरे सुनो, नाश्ता तैयार है।” वह जवाब देता है, “बस, थोड़ा इंतजार करो, मैं अब एक रेसिपी ढूंढ रहा हूं।” इतना कहकर वह मोबाइल पर “फास्टेस्ट नाश्ता कैसे बनाएं” वीडियो देख रहा है, जबकि असली नाश्ता उसके सामने ठंडा हो रहा है।
दृश्य 3: सड़क पर चलना
रास्ते में, वह मोबाइल में डूबा हुआ होता है, अपने प्रिय गेम का लेवल पार करने में। गाड़ी की आवाज सुनकर एक दोस्त बोलता है, “भाई, सड़क पर ध्यान दो।” वह बिना देखे ही उत्तर देता है, “अरे, मुझे लम्बी दौड़ का खेल खेलना है।” और जरा सोचिए, अगर उसे किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी, तो उसका क्या होगा?
दृश्य 4: सोशल मीडिया का जादू
वह कॉफी शॉप में बैठा है, चार दोस्तों के साथ। लेकिन कोई बातचीत नहीं हो रही, क्योंकि सभी अपने-अपने मोबाइल में खोए हुए हैं। “यार, तुमने मेरी नई तस्वीर देखी? बाघ के साथ फोटो।” एक दोस्त पूछता है। जवाब में दूसरा कहता है, “नहीं यार, मैं तो यहां भी ‘टाइगर’ की वर्चुअल सफारी कर रहा हूं।”
दृश्य 5: सोने का समय
आखिरकार, रात होती है और वह सोने की तैयारी करता है। बिस्तर पर जाकर कहता है, “आज तो बहुत काम किया, अब थोड़ा मोबाइल से ‘पुनर्जन्म’ ले लूं।” और फिर, वह मोबाइल में लेटकर एक फिल्म देखने लगता है। और सोते समय वह यह भी नहीं देखता कि उसकी पत्नी उसे गुस्से से घूर रही है।
असली पहचान को भूल रहे हैं?
आज के जमाने में मोबाइल हमारी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। लेकिन कभी-कभी हमें यह सोचना चाहिए कि हम अपने मोबाइल से चिपके रहने के बजाय अपने असली जीवन को जी रहे हैं या नहीं। अगर हम मोबाइल में इतना समय बिताते हैं, तो क्या हम अपनी असली पहचान को भूल रहे हैं?
तो चलिए, हंसी-मजाक के साथ हम यह तय करते हैं कि थोड़ी देर के लिए मोबाइल को किनारे रखकर अपने दोस्तों और परिवार के साथ असली जिंदगी का मजा लें। आखिरकार, असली मजा असली रिश्तों में ही है, ना कि “ऑनलाइन” लाइक्स में।