विजयदशमी पर हर साल रावण का पुतला जलाने की परंपरा: असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक
संतोष पांडेय
वाराणसी: विजयदशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, भारत में असत्य पर सत्य की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन का सबसे प्रमुख और प्रमुख आकर्षण है रावण के विशालकाय पुतले का दहन, जो पूरे देश में उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है, जो पौराणिक कथाओं के अनुसार बुराई और अहंकार के प्रतीक माने जाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश
रावण का पुतला जलाने की परंपरा रामायण की उस घटना से जुड़ी है जब भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध कर देवी सीता को उसके चंगुल से मुक्त कराया था। रावण को उसकी शक्ति, ज्ञान और पराक्रम के बावजूद उसकी अहंकार और अनैतिकता के कारण हराया गया। भगवान राम के हाथों रावण के पराजित होने को सदियों से अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में देखा जाता है, और रावण दहन इस विजय का प्रतीक है।
एक परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण अपने ज्ञान और बलशाली साम्राज्य के बावजूद अहंकार से भरा हुआ था और उसने माता सीता का अपहरण कर अधर्म का रास्ता अपनाया। इस अधर्म के कारण भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और हनुमान ने वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर रावण को हराया। दशहरे के दिन राम द्वारा रावण का वध किया गया, और तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाने लगा।
सांस्कृतिक महत्व
रावण दहन केवल पौराणिक कथा का प्रतीक ही नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि चाहे कितनी भी बड़ी शक्ति क्यों न हो, यदि वह बुराई के मार्ग पर है तो उसका अंत निश्चित है। विजयदशमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि अहंकार, अनैतिकता और अन्याय का कोई स्थान नहीं है, और अंत में सत्य, न्याय और धर्म की जीत होती है। यही कारण है कि रावण दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है।
आधुनिक समय में रावण दहन
आज के समय में भी रावण दहन की परंपरा को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़े होने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। चाहे वह भ्रष्टाचार हो, अन्याय हो या समाज में फैली कोई और बुराई, रावण दहन हर साल यह याद दिलाता है कि इन सबका अंत निश्चित है। बड़े शहरों से लेकर छोटे गांवों तक हर जगह लोग रावण के पुतले का दहन कर इस पवित्र पर्व को मनाते हैं और अच्छाई की ओर कदम बढ़ाने की प्रेरणा लेते हैं।
इस प्रकार, हर साल विजयदशमी पर रावण का पुतला जलाना न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाज को सत्य, धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाली एक महत्वपूर्ण परंपरा भी है।