कॉपी & पेस्ट 2nd पार्ट: हे ज्ञानी! दरिया बहाओ, बटन दबाओ, बुद्धिजीवी बन जाओ
कहते हैं, “ज्ञान अर्जन करना कठिन है।” पर कॉपी-पेस्ट की दुनिया में ये कहावत अब पुरानी हो चुकी है। आजकल का दौर कुछ ऐसा है कि अगर आपके पास एक कंप्यूटर और इंटरनेट है तो आप बिना दिमाग पर जोर दिए भी महान लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, और कभी-कभी तो आध्यात्मिक गुरु भी बन सकते हैं। बस ‘Ctrl+C’ और ‘Ctrl+V’ का कमाल, और आप तैयार हैं ज्ञान का दरिया बहाने के लिए!
कॉपी-पेस्ट की महानता का आलम तो ऐसा है कि लोग इसे कला मानते हैं। सुबह उठते ही चाय के साथ फेसबुक या व्हाट्सएप खोलिए, किसी कोटेबल कोटेशन की तलाश कीजिए, और फिर अपनी वाल पर पेस्ट कर दीजिए। वाह! अब आप भी गूढ़ विचारधारा वाले इंसान बन गए।
कॉलेज के छात्र भी इस कला में माहिर हो चुके हैं। प्रोफेसर ने कहा, “रिसर्च पेपर लिखो,” तो जनाब ने इंटरनेट पर सबसे पहले लिंक खोला, वहां से एक पैराग्राफ कॉपी किया और फिर दूसरे लिंक से एक और। थोड़ी देर में रिसर्च पेपर तैयार! और अगर गलती से भी प्रोफेसर ने पूछ लिया, “क्या यह तुमने खुद लिखा है?” तो सीधा जवाब, “सिर्फ प्रेरणा ली है, सर!”
अब तो लेखक भी नए जमाने की हवा में बहने लगे हैं। पहले जहां एक उपन्यास लिखने में सालों लगते थे, अब चैप्टर के चैप्टर कॉपी-पेस्ट हो रहे हैं। कुछ तो ऐसे हुनरमंद हैं कि वे एक किताब को ही दूसरी किताब में बदल देते हैं, जैसे कि सिर्फ पात्रों के नाम बदलकर पूरी कहानी उनकी हो जाती है!
कॉपी-पेस्ट की महानता यहीं खत्म नहीं होती। ऑफिस के कर्मचारियों के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है। बॉस ने कहा, “प्रोजेक्ट रिपोर्ट चाहिए,” और हमारे कर्मचारी साहब सीधे इंटरनेट की शरण में। वहां से एक रिपोर्ट कॉपी, थोड़े शब्द इधर-उधर किए, और प्रेजेंटेशन तैयार। बॉस खुश, कर्मचारी खुश, और गूगल तो हमेशा ही खुश!
असल में, इस कॉपी-पेस्ट संस्कृति ने हमारी जिंदगी को इतना आसान बना दिया है कि हम अब खुद से सोचना ही भूल चुके हैं। विचार, मेहनत और सृजनात्मकता जैसी बातें अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में रह गई हैं। दुनिया को नए आविष्कार चाहिए, लेकिन हम तो कॉपी-पेस्ट करके ही मस्त हैं। अब समझें?