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कॉपी & पेस्ट: आधुनिक समाज का “सृजनात्मक” संकट, वर्ड डॉक्यूमेंट में ‘Ctrl+C’ और ‘Ctrl+V’ का मेल

व्यंग्य

आजकल का दौर कॉपी और पेस्ट का है। गुरु! लोग समझते हैं कि दुनिया की सारी समस्याओं का हल सिर्फ इन दो शब्दों में है। जैसे ही कोई काम करना हो, फटाक से कॉपी करो और पेस्ट मार दो। भले ही दिमाग की मेहनत को आराम मिल जाए, लेकिन इस कॉपी-पेस्ट की क्रांति ने सृजनात्मकता को चारों खाने चित्त कर दिया है।

पहले जमाना था जब लेखक रात भर मशक्कत करते, शब्दों को सजाते, विचारों में घंटों डूबते और फिर जाकर एक लाइन लिखते थे। अब? एक क्लिक और दुनिया भर का ज्ञान अपने दस्तावेज़ में हाजिर! और मजे की बात तो यह है कि कॉपी-पेस्ट करने वाले लोग खुद को बड़ा क्रांतिकारी समझते हैं, जैसे इन्होंने गूगल का आविष्कार कर दिया हो।

कॉलेज के स्टूडेंट्स को देखिए। उन्हें लगता है कि रिसर्च का मतलब है वर्ड डॉक्यूमेंट में ‘Ctrl+C’ और ‘Ctrl+V’ का मेल। प्रोफेसर को सब पता होता है कि उनके निबंध का आधार इंटरनेट है, लेकिन चुप रहते हैं क्योंकि वे भी कभी इसी क्रांति का हिस्सा रहे होंगे!

अब तो साहित्यकार भी कॉपी-पेस्ट की महिमा में लीन हो गए हैं। पहले साहित्य सम्मेलन में लोग कविता सुनाते थे, अब व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स के सहारे श्रोताओं को रुला देते हैं। सोशल मीडिया ने तो इसे एक नई ऊंचाई दी है- “शेयर” का बटन दबाओ और एक ही सेकंड में अपनी “विचारधारा” दुनिया के सामने रख दो।

असल में, कॉपी-पेस्ट का असली मज़ा तो तब आता है जब आप किसी की पूरी लाइन उठाते हैं, और अंत में अपना नाम लिखकर कहते हैं, “देखो, मैंने क्या गहरा विचार दिया है!” बस, वाहवाही लूटो और आगे बढ़ो।

तो साहब, कॉपी-पेस्ट की इस अजब दुनिया में सृजनात्मकता अब एक म्यूज़ियम का हिस्सा बन गई है। जहां मेहनत करने वालों को गिनती के लोग जानते हैं, और कॉपी-पेस्ट करने वालों को ‘वायरल’ कहकर पूजने वाले हजारों। का समझें?

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