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रामनगर की रामलीला: श्रीराम वनगमन, श्रद्धालुओं की आंखों से अश्रुधारा, साथ चल पड़ी अयोध्या, आस्था, पौराणिकता और समर्पण की अनूठी कथा

वाराणसी, रामनगर: रामनगर की रामलीला, विश्वविख्यात है, जहां हर दृश्य में पौराणिकता की गहराई और आस्था का अटूट बंधन झलकता है। बुधवार की शाम को जब रामलीला के नौवें दिन श्रीराम के वनगमन की लीला का मंचन हुआ, तो समूचे रामनगर में भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा। जैसे-जैसे भगवान श्रीराम के वन की ओर प्रस्थान का दृश्य सामने आया, श्रद्धालुओं की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। यह केवल लीला नहीं, बल्कि वह क्षण था जब आस्था और सांस्कृतिक महत्व एकाकार हो गए।

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम और समर्पण की प्रतिमूर्ति

श्रीराम केवल अयोध्या के राजा नहीं, वे लोगों के दिलों में बसते हैं। उनके हर निर्णय में धर्म, मर्यादा और परिवार के प्रति अद्वितीय समर्पण झलकता है। जब पिता दशरथ ने कैकेई के वचन को पूरा करने के लिए श्रीराम को वनवास भेजा, तो बिना किसी द्वंद्व के, राजपद का मोह त्यागकर श्रीराम वन की ओर चल पड़े। इस प्रसंग में राम का त्याग और मर्यादा हर युग के लिए प्रेरणास्रोत है। वनवास का यह निर्णय न केवल एक राजा का, बल्कि हर उस व्यक्ति का था जिसने अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखा।

माता सीता और लक्ष्मण, त्याग और भक्ति का उदाहरण

सीता, श्रीराम की अर्धांगिनी, कैसे अपने पति को अकेले वनवास जाते देख सकती थीं? उन्होंने राजमहल के सुखों को त्यागकर श्रीराम के साथ वनगमन का निश्चय किया। राम उन्हें बार-बार समझाने की कोशिश करते हैं कि अयोध्या में रहकर सास-ससुर की सेवा करो, लेकिन सीता का जवाब भावनाओं से भरा था – “जब आप वन में हों, तो मैं महल में सुख कैसे भोगूंगी?” इस संवाद में नारी का समर्पण और पति के प्रति निष्ठा की अद्वितीय भावना झलकती है।

लक्ष्मण, जो श्रीराम के सबसे बड़े भक्त थे, ने भी भाई के साथ वन जाने का निश्चय किया। सुमित्रा की आज्ञा थी कि “जहां राम हैं, वहीं तुम्हारा स्थान है,” और इसी आदेश को मानते हुए लक्ष्मण श्रीराम के साथ वन की ओर चल पड़े।

अयोध्या का साथ, राम के वनगमन पर भावुक अयोध्या

जब श्रीराम वन को प्रस्थान कर रहे थे, तो केवल सीता और लक्ष्मण ही नहीं, बल्कि पूरी अयोध्या उनके पीछे चल पड़ी। जैसे राम का दुख, उनके अनुयायियों का अपना हो। इस लीला के दृश्य में अयोध्या के नागरिकों का राम के प्रति प्रेम और उनकी आस्था का दृश्य मन को छू लेने वाला था। हर श्रद्धालु की आंखें श्रीराम के वनगमन की इस लीला को देखकर भीग गईं, और वे राम के त्याग को अपना मानकर भावविह्वल हो उठे।

निषादराज का समर्पण और भक्ति

वन में निषादराज का आगमन भी इस लीला का महत्वपूर्ण अंग रहा। जैसे ही राम, सीता और लक्ष्मण गंगा के किनारे पहुंचे, निषादराज का प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने अपने पूरे गांव को राम के स्वागत में लगा दिया, लेकिन राम का विनम्र स्वभाव और उनका साधारण जीवन जीने का प्रण उन्हें वन में ही रुकने के लिए प्रेरित करता रहा। निषादराज के भक्ति भाव और समर्पण को देखकर लक्ष्मण ने उन्हें जीवन के सत्य का उपदेश दिया और राम के चरणों में अनुराग करने की प्रेरणा दी।

लीला का संदेश, मर्यादा, त्याग और धर्म का अनुकरण

रामनगर की रामलीला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और त्याग का एक जीवंत उदाहरण है। यहां हर दृश्य में भगवान श्रीराम के जीवन के आदर्शों को साकार रूप में प्रस्तुत किया जाता है। अयोध्या के राम से लेकर वन के राम तक, हर प्रसंग में मर्यादा और त्याग का संदेश मिलता है। यह लीला हमारे समाज को याद दिलाती है कि अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहना और अपने परिजनों के प्रति निष्ठा रखना ही सच्चा धर्म है।

इस पावन लीला में भगवान की आरती के बाद मंचन का समापन हुआ, लेकिन हर श्रद्धालु के दिल में राम का त्याग और उनकी मर्यादा की गूंज युगों-युगों तक जीवित रहेगी।

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