सेविंग अकाउंट: सेविंग मेरी, सर्विस चार्ज आपका- ये कैसा गणित है?
व्यंग्य
एक समय था जब लोग मिट्टी के गुल्लक में पैसे डालकर बचत किया करते थे। फिर आया सेविंग अकाउंट– जिसे बैंक ने यह कहकर लांच किया कि “आपका पैसा सुरक्षित रहेगा और ब्याज भी मिलेगा।” लेकिन असलियत में यह अकाउंट एक ऐसी जगह बन गया है, जहां पैसे जमा होने से पहले ही उड़ जाते हैं।
सेविंग अकाउंट की खासियतें (थोड़ी सी गहराई में):
- बैंक का वादा: “आपके पैसे पर आपको ब्याज मिलेगा।”
- असलियत: ब्याज इतना कम मिलता है कि लगेगा बैंक ने टिप दी है, इनाम नहीं।
- मिनिमम बैलेंस का झंझट
- अगर बैलेंस कम हो गया तो पेनाल्टी कट जाती है।
- और अगर बैलेंस ज्यादा हो गया तो महीने के अंत में आपका सेविंग अकाउंट आपका मजाक उड़ाता है, “इतना कमा लिया, लेकिन खर्च नहीं किया?”
- ATM की कहानी
- कार्ड बनवाने के बाद पता चलता है कि हर साल चार्ज कटेगा।
- और अगर कार्ड खो गया तो नया कार्ड बनवाने में ही आधा बैलेंस खत्म हो जाएगा।
सेविंग अकाउंट पर जनता का दर्द:
- “पैसा मेरा, पर एटीएम की लिमिट बैंक तय करता है। क्या मैं खुद का पैसा निकालने के लिए परमिशन भी मांगू?”
- “मिनिमम बैलेंस ऐसा है जैसे बैंक ने कहा हो, ‘भले भूखे रहो, पर बैलेंस पूरा रखो।’“
- “बैंक ब्याज देने की बजाय ऐसा बर्ताव करता है, जैसे पैसे रखने का किराया वसूल रहा हो।”
सेविंग अकाउंट की असली सेवा:
बचत करने का सपना दिखाकर खर्च करवाना ही इसका असली मकसद है। बैंक के चार्ज और पेनाल्टी से ऐसा महसूस होता है जैसे हम सेविंग अकाउंट नहीं, बैंक के लिए सेविंग प्लान कर रहे हों।
नोट: अगली बार जब बैंक आपको सेविंग अकाउंट खोलने का सुझाव दे, तो उससे ये पूछना मत भूलें- “सेविंग मेरी, सर्विस चार्ज आपका- ये कैसा गणित है?”