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मौजूदा दौर का इंसान: खबरें देखने में मजा कॉमेडी शो ज्यादा, खबर भी अब ‘हास्य व्यंग्य’

व्यंग्य

इस दौरे-हाजिर के इंसान को देखकर अक्सर लगता है कि अगर शेक्सपीयर आज होते, तो वह “संपूर्ण दुनिया एक मंच है” की जगह “संपूर्ण दुनिया एक मोबाइल है” लिखते। हम इंसान मोबाइल के बिना वैसे ही अधूरे हैं, जैसे बिना दही के समोसा या बिना ऑक्सीजन के सांस। इस दौर में सबसे बड़ा युद्ध इंटरनेट की स्पीड से होता है, और हारने वाले अक्सर ‘रिचार्ज’ में शांति खोजते हैं। आजकल के लोग दिन में कम से कम दस बार ‘पॉजिटिव’ शब्द सुनते हैं।

फिटनेस का भी नया मापदंड है- पहले दौड़ने, कसरत करने वाले लोग फिट माने जाते थे। अब तो बस इतना करो कि फिटनेस की ऐप डाउनलोड कर लो और दिन में 10 बार वॉच पर ‘स्टेप्स काउंट’ चेक कर लो। इतना काफी है, क्योंकि असली एक्सरसाइज तो इंस्टाग्राम पर फोटोज एडिट करने में हो जाती है। एक फोटो पोस्ट करने में जितनी उंगली चलती है, उतना तो पुराने जमाने के लोग खेतों में हल नहीं चलाते थे?

राजनीति की बात करें तो मौजूदा नेता वैसे ही बयान देते हैं जैसे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ज्ञान बांटते हैं। हर मुद्दे पर बयान है, पर हल कोई नहीं। और जनता? वह नेताओं के बयानों में ‘मनोरंजन’ ढूंढने लगी है। टीवी पर खबरें देखने का मजा अब कॉमेडी शो देखने से ज्यादा मिलता है। दरअसल, ये खबरें भी अब ‘हास्य व्यंग्य’ का आधुनिक रूप बन चुकी हैं।

मौजूदा दौर का सबसे बड़ा क्रांतिकारी काम है- फेसबुक स्टेटस अपडेट करना। आप बेरोजगार हों, लेकिन अगर आपने स्टेटस में “फीलिंग ग्रेट” डाल दिया, तो लोग समझ लेंगे कि आप वर्ल्ड बैंक के डायरेक्टर हैं। और हां, व्हाट्सएप डीपी में तिरंगा लगाना, यही असली देशभक्ति है। बाकी देश की चिंता करने के लिए समय किसके पास है?

इसी दौर में अगर एक इंसान बैंक में पैसा जमा कराने जाए और बैंककर्मी कहे कि “लाइन में लगिए”, तो उस इंसान के चेहरे पर ऐसा भाव आ जाता है, मानो उससे कहा गया हो कि आपसे किडनी दान में चाहिए। इस युग का मूलमंत्र यही है- “ऑनलाइन हो, तो ठीक हो, वरना जीने का क्या फायदा?”

सच कहें, तो मौजूदा दौर का इंसान हंसी का पात्र खुद बन चुका है। हम सब अपने-अपने फोन के स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ऐसे जी रहे हैं जैसे स्क्रीन के उस पार कोई नया ब्रह्मांड छिपा हो। और इस दौर में जीने का सबसे बड़ा कंफ्यूजन यही है-‘अनलाइक’ करना पहले आसान था, अब दिल और दिमाग दोनों ‘ब्लॉक’ हो जाते हैं।

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