पटाखों से दूर रहने की अपील: ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता अभियान का अंतिम दिन
वाराणसी: सत्या फाउंडेशन द्वारा दीपावली के ठीक पहले ध्वनि प्रदूषण जागरूकता अभियान का समापन मड़ौली और मंडुवाडीह में आयोजित दो स्काकूलों के र्यक्रमों के साथ हुआ। इस अभियान के तहत छात्रों को ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया गया और सुरक्षित व शांतिपूर्ण उत्सवों का महत्व बताया गया।
स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में सत्या फाउंडेशन के सचिव चेतन उपाध्याय ने ध्वनि की इकाई ‘डेसीबल’ के बारे में जानकारी दी और बताया कि 40-50 डेसीबल की ध्वनि मानव स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त है। बनारस में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि यह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, और मानसिक विकारों को बढ़ा रहा है।
उन्होंने हरियाली के घटने को भी ध्वनि और वायु प्रदूषण में वृद्धि का कारण बताया और लाउडस्पीकर व आतिशबाजी के सीमित उपयोग का आह्वान किया।
चेतन उपाध्याय ने छात्रों से सवाल किया कि “क्या आतिशबाजी किसी भी धर्म का हिस्सा हो सकती है, जब इसके कारण अस्पतालों के बर्न वार्ड भर जाते हैं और आग से करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो जाती है?” बच्चों ने एक स्वर में ‘नहीं’ कहकर सहमति जताई। इसके बाद सभी बच्चों से अपील की गई कि वे अपने किसी भी त्योहार या शादी समारोह में पटाखों का इस्तेमाल न करें।
वरिष्ठ गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.के. सिन्हा ने भी विद्यार्थियों को संबोधित किया और शोर व प्रदूषण से बच्चों की मानसिकता और स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि पटाखों के कारण लोगों की श्रवण शक्ति क्षीण हो सकती है और हृदय व रक्तचाप पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनका संदेश था कि दीपावली या अन्य किसी भी समारोह में पटाखों से दूर रहना सभी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।