खानपान प्रतियोगिता के चैंपियन: सेविंग साइज का मतलब होता है जितना हो सके उतना
व्यंग्य
हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खाने के मामले में अपने आप को किसी खानपान प्रतियोगिता का चैंपियन समझते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे उनकी प्लेट में खाना नहीं, बल्कि कुछ अनमोल खजाना भरा हो।
प्लेट का जादू: इन महानुभावों के सामने जब भी कोई डिश आती है, तो उनका पहला काम होता है- प्लेट को इस तरह भरना कि लगता है जैसे उन्होंने किसी ऑल-इंडिया फूड चैलेंज में हिस्सा लिया है। एक बार की बात है, एक मित्र ने सब्जी का एक कटोरा उठाया, और कहा, “बस एक चम्मच,” लेकिन उनकी “एक चम्मच” को देखकर लगता था जैसे उन्होंने एक पूरी सब्जी की फसल समेट ली हो।
सेविंग साइज का ज्ञान: ये लोग तो मानो भुजिया और पराठे की प्रत्येक सेवा को अपने “खाने की नीति” में शामिल कर चुके हैं। उन्हें इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं होती कि सही मात्रा क्या होनी चाहिए; उनके लिए “सेविंग साइज” का मतलब होता है- “जितना हो सके, उतना।”
जितना खाओ, उतना जश्न: जब तक भोजन खत्म नहीं होता, तब तक इनके चेहरे पर संतोष की कोई लकीर नहीं होती। ये जश्न मनाते हैं, जैसे कोई त्यौहार हो, और जब खाना खत्म हो जाता है, तो उनकी प्लेट की स्थिति देखकर लगता है कि महाकाल की भक्ति में उनका संपूर्ण ध्यान लगा था।
आत्म-प्रेम का स्तर: इनका आत्म-प्रेम तो इतना बढ़ जाता है कि खाना समाप्त होने पर इन्हें अपनी फोटो खिंचवाने का भी मन करता है। “देखो, मैंने ये सब खा लिया!” का गर्व से भरा बयान देते हुए, वे उस पल को सोशल मीडिया पर साझा करने में संकोच नहीं करते।
तो भइया-बहनों, इस तरह के लोग हमारी जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनका खाना-पीना हमें याद दिलाता है कि जिंदगी का असली मजा खाने में ही है- बस यह ध्यान रखना है कि कभी-कभी प्लेट को थोड़ा कम भरना भी चाहिए, ताकि प्यार से बनाई गई डिश की कद्र बनी रहे।