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पितृपक्ष में दही खाना: परंपरा और मान्यताएं, खाने-पीने के कुछ नियम विशेष रूप से ध्यान देने योग्य

पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय होता है जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं। इस अवधि में खाने-पीने के कुछ नियम और परंपराएं विशेष रूप से ध्यान देने योग्य होती हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख सवाल है- पितृपक्ष में दही खाना चाहिए या नहीं?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में सादा और सात्विक भोजन का पालन करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इस समय तामसिक और भारी भोजन से परहेज करना चाहिए, क्योंकि यह समय पूर्वजों की आत्मा को समर्पित होता है। दही, जो आयुर्वेद में तामसिक माना जाता है, का सेवन पितृपक्ष में वर्जित समझा जाता है। इसे खाने से पूर्वजों की आत्मा को कष्ट पहुंच सकता है, ऐसी मान्यता है।

वहीं, कुछ धार्मिक विद्वान यह भी कहते हैं कि दही का सेवन विशेष अवसरों पर ही वर्जित है, जैसे अमावस्या के दिन या श्राद्ध कर्म के दौरान। इसके अलावा, यदि किसी को स्वास्थ्य संबंधी कारणों से दही खाना आवश्यक हो, तो वे इसे सेवन कर सकते हैं, लेकिन साधारण रूप में और सादा भोजन ही प्राथमिकता होनी चाहिए।

विज्ञान के दृष्टिकोण से, दही एक पौष्टिक आहार है, लेकिन मौसम के हिसाब से इसका सेवन सीमित करना फायदेमंद हो सकता है। पितृपक्ष के दौरान, जब मौसम में बदलाव हो रहा होता है, ठंडी प्रकृति वाले पदार्थों का अधिक सेवन स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है।

अंततः, दही खाने को लेकर कोई कठोर नियम नहीं है, लेकिन धार्मिक आस्थाओं और पारिवारिक परंपराओं का पालन करना इस समय महत्वपूर्ण होता है। पितृपक्ष में संयमित और सात्विक जीवनशैली अपनाने पर जोर दिया जाता है ताकि पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।

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