गूगल महाराज की महिमा: वरना आप सिरदर्द का इलाज ढूंढते-ढूंढते खुद को सर्जन समझने लगेंगे
व्यंग्य
कभी सोचा है कि हमारे दादा-नाना, जिनके पास ‘तथ्य’ ढूंढने का साधन सिर्फ मोटी-मोटी किताबें होती थीं, वे कैसे जीते थे? अब जमाना बदल गया है, क्योंकि गूगल महाराज हमारे जीवन में आ चुके हैं। सुबह आंख खुलते ही पहला काम होता है, ‘गूगल करना’। ‘कितनी नींद हो चुकी है’, ‘सपने का क्या मतलब था’, ‘ब्रश कैसे करें’- सब कुछ गूगल बताएगा।
गूगल महाराज की खास बात ये है कि आपके हर सवाल का जवाब होता है। चाहे सवाल हो, “चाय को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?” या फिर “अंतरिक्ष में एलियंस से मिलने पर क्या कहें?” गूगल महाराज तुरंत कुछ न कुछ निकाल लाते हैं। लेकिन समस्या तब होती है जब हम कोई साधारण सा सवाल भी महाराज से पूछ लेते हैं और गूगल साहब हमें ऐसी जानकारी दे देते हैं कि हम सिर खुजलाते रह जाते हैं।
मान लीजिए आप बस जानना चाहते थे कि सिरदर्द की दवा कौन सी लें, लेकिन गूगल महाराज आपको सीधा ऐसी बीमारियों की सूची दिखा देंगे जिनके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। अगले ही पल आप खुद को एक गंभीर रोगी समझने लगते हैं। “अरे नहीं, ये तो कैंसर के लक्षण हैं!”
गूगल महाराज की इस असीमित ज्ञान की दुकान में कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि आप एक सवाल पूछने जाते हैं और जवाब में चार नये सवाल साथ में लेकर लौटते हैं। मसलन, आप सिर्फ जानना चाहते थे कि आज मौसम कैसा है, लेकिन महाराज ने रास्ते में आपको दुनिया भर के पर्यावरण संकट, सूर्य ग्रहण और ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में इतना ज्ञान दे दिया कि आपका मौसम का सवाल तो कब का पीछे छूट गया।
गूगल पर सब कुछ ‘उपलब्ध’ है- खाने की रेसिपी से लेकर रिश्तों की समस्याओं तक। कोई आश्चर्य नहीं कि एक दिन हम गूगल से पूछेंगे, “गूगल, ज़िन्दगी का मतलब क्या है?” और जवाब में हमें मिलेगा, “कृपया विज्ञापन देखिए!”
कुल मिलाकर, गूगल महाराज हमारे युग के नए ‘ज्ञानी बाबा’ हैं, जो एक ही क्लिक पर हमें ‘सब कुछ’ दे सकते हैं- चाहे हम मांगे या न मांगे। पर ध्यान रहे, उनकी दी हुई जानकारी का सही-सही उपयोग करना भी एक कला है, वरना आप सिरदर्द का इलाज ढूंढते-ढूंढते खुद को सर्जन समझने लगेंगे।