पितृपक्ष में तर्पण और पिंडदान का महत्व: पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक, पूर्वज हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा
शंकरनाथ पांडेय
वाराणसी: पितृपक्ष हिंदू धर्म का एक विशेष समय है, जो श्रद्धालुओं को अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस अवधि में तर्पण, पिंडदान और अन्य दान करना अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है।
इस वर्ष पितृपक्ष की अवधि के दौरान लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किया, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अनूठा उदाहरण सामने आता है।
तर्पण और पिंडदान का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर परिवार पर आशीर्वाद बरसाते हैं। ‘तर्पण’ का अर्थ है तृप्त करना, और इसे जल अर्पण के माध्यम से किया जाता है। श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरयू, नर्मदा जैसे पवित्र नदियों के किनारे तर्पण करते हैं, जिससे वे अपने पूर्वजों की आत्मा को जल अर्पण कर तृप्ति का अनुभव कराते हैं।
‘पिंडदान’ का भी अत्यधिक महत्व है। पिंडदान का तात्पर्य शरीर को अन्न या भोजन का अर्पण करने से है, जिसे श्राद्ध कर्म के रूप में किया जाता है। पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, जिससे वे संसार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। गया, वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थलों पर पिंडदान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
दान और उसका महत्व
पितृपक्ष के दौरान सिर्फ तर्पण और पिंडदान ही नहीं, बल्कि अन्य प्रकार के दान भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। भोजन दान, वस्त्र दान, गौ दान और भूमि दान जैसे कार्य इस समय विशेष रूप से किए जाते हैं। मान्यता है कि इस समय दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
श्रद्धालु ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करते हैं। पवित्र ग्रंथों में बताया गया है कि पितृपक्ष में किए गए दान से पूर्वजों की आत्मा संतुष्ट होती है और उन्हें सद्गति प्राप्त होती है। साथ ही, दान करने से परिवार के सदस्यों पर भी पुण्य का प्रभाव पड़ता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
पितृपक्ष में श्रद्धा और आस्था का संगम
पितृपक्ष न केवल धार्मिक कर्मकांडों का समय होता है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा भी है, जिसमें श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए समर्पित होते हैं। इस समय लोग अपनी व्यस्त दिनचर्या को त्याग कर पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। पूरे देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है, जहां वे तर्पण और पिंडदान की धार्मिक क्रियाओं को संपन्न करते हैं।
हमारी जिम्मेदारी
पितृपक्ष हमें यह सिखाता है कि हमारे पूर्वज हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, और उन्हें सम्मान देना हमारी जिम्मेदारी है। तर्पण, पिंडदान और दान के माध्यम से हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं। यह अवधि केवल धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें श्रद्धा, आस्था और पारिवारिक एकता का अद्वितीय संगम होता है।