Kokila Vrat 2024 Date: जुलाई में कब रखा जाएगा कोकिला व्रत? नोट कर लें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
हर साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि पर कोकिला व्रत किया जाता है. यह व्रत देवों के देव भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता पार्वती को समर्पित माना गया है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है और इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है. कोकिला व्रत करने से अविवाहित महिलाओं को मनचाहा वर मिलता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, कोकिला व्रत के पुण्य प्रताप से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी मिलता है. अगर आप भी मनचाहा वर पाना चाहती हैं तो ऐसे में इस साल कोकिला व्रत कब रखा जाएगा, यह पता होना आपके लिए जरूरी है. इस साल कोकिला व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और इसका महत्व क्या है, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
कब है कोकिला व्रत 2024?
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई को सुबह 5 बजकर 59 मिनट पर शुरू हो जाएगी. भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में होती है, इसके लिए 20 जुलाई को कोकिला व्रत रखा जाएगा. व्रती 20 जुलाई को कोकिला व्रत रख सकती हैं.
कोकिला व्रत पूजा शुभ मुहूर्त
कोकिला व्रत 20 जुलाई को सुबह 5 बजकर 36 मिनट से सुबह 6 बजकर 21 मिनट के बीच कर सकते हैं. इसके अलावा, 21 जुलाई को सुबह 8 बजकर 11 मिनट के बाद भी आप शिवजी की पूजा कर सकते हैं.
कोकिला व्रत पूजा विधि
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में उठें.
सबसे पहले स्नान के बाद इस समय भगवान शिव और मां पार्वती का ध्यान करें.
फिर घर की सफाई करें और गंगाजल का घर में छिड़काव करें.
इसके बाद पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और आचमन कर व्रत संकल्प लें.
फिर एक लौटे में जल लेकर ब्रह्म मुहूर्त में ही सूर्यदेव को जल अर्पित करें.
इसके बाद पूजा घर में चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर शिव परिवार की प्रतिमा स्थापित करें.
अब पंचोपचार करने के बाद भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा करें.
इसके बाद भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, सफेद फल, फूल आदि अर्पित करें.
पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ और शिव मंत्रों का जाप करें.
अंत में आरती करें और अपनी मनोकामना शिव परिवार से करें.
मनोकामना अनुसार दिन भर उपवास रखें और शाम में पूजा-आरती कर फलाहार करना चाहिए.
कोकिला व्रत का महत्व
कोकिला व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. यह व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला भी माना गया है. पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत रखा था. इस व्रत को नारीत्व और पतिव्रता का प्रतीक माना जाता है. इस व्रत को करने से वैवाहिक संबंध मजबूत होते हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह बढ़ता है.