पितृपक्ष में पिंडदान: पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और मोक्ष का मार्ग, वाराणसी और गया का विशेष महत्व
वाराणसी: पितृपक्ष हिन्दू धर्म का एक विशेष समय होता है, जब पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक, कुल 16 दिनों तक होती है, जिसे श्राद्ध पक्ष या महालय पक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
पिंडदान का महत्व: हिन्दू धर्म में मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान, हमारे पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। पिंडदान, जिसमें चावल, तिल और आटे के गोले (पिंड) अर्पित किए जाते हैं, पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त करने में सहायक माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस अनुष्ठान से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है और उनका आशीर्वाद परिवार को मिलता है।
धार्मिक दृष्टिकोण: वेदों और पुराणों में पिंडदान का विशेष उल्लेख मिलता है। “गरुड़ पुराण” और “विष्णु पुराण” जैसे धार्मिक ग्रंथों में इसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना गया है। इसमें बताया गया है कि जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, उन्हें समृद्धि और जीवन में शांति मिलती है।
वाराणसी और गया में विशेष महत्व: काशी के तीर्थ पुरोहित शंकर पांडेय बताते हैं कि पिंडदान के लिए वाराणसी और गया जैसे पवित्र स्थलों का विशेष महत्व है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इन धार्मिक स्थलों पर जाकर पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि इन स्थानों पर पिंडदान करने से पूर्वजों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पिंडदान कैसे किया जाता है? पिंडदान करने के लिए श्रद्धालु पवित्र नदी के किनारे बैठते हैं और आटे, तिल और चावल से बने पिंड को मंत्रोच्चारण के साथ अर्पित करते हैं। पिंड के माध्यम से भोजन को पितरों तक पहुंचाया जाता है। साथ ही, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दिया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है।
समाज और संस्कृति में महत्व: पितृपक्ष न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज और परिवार में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करने का समय भी है। इस समय लोग अपने पूर्वजों की स्मृति को संजोते हुए उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।
निष्कर्ष: पितृपक्ष में पिंडदान एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, बल्कि वर्तमान पीढ़ी के लिए भी आशीर्वाद और समृद्धि का मार्ग खोलता है।