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रामनगर की रामलीला: भरत के त्याग ने देवताओं को असमंजस में डाला, बरसात पर श्रद्धालुओं ने धरमपूर्वक इंतजार किया

वाराणसी, रामनगर: विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में तेरहवें दिन का मंचन भावुकता और आदर्शों से भरा रहा। भरत, जो त्याग की प्रतिमूर्ति माने जाते हैं, ने ऐसा प्रस्ताव रखा जिसने देवताओं को भी असमंजस में डाल दिया। भरत ने श्रीराम से आग्रह किया कि वे अयोध्या लौटें और स्वयं वनवास का दायित्व वहन करने का प्रस्ताव दिया। यह प्रसंग रामायण के उन आदर्शों को जीवंत करता है, जो पारिवारिक त्याग, प्रेम और कर्तव्य की महानता को स्थापित करते हैं।

भरत का त्याग, आदर्शों की पराकाष्ठा

लीला का यह दृश्य तब शुरू होता है जब गुरु वशिष्ठ भरत से कहते हैं कि राम को अयोध्या वापस लाने के लिए एक उपाय सोचें। भरत, जिन्होंने सदैव अपने भाइयों और परिवार के लिए त्याग किया है, विनम्रता से गुरु वशिष्ठ से निवेदन करते हैं कि वे उन्हें निर्देश दें। वशिष्ठ द्वारा दिए गए सुझाव पर भरत अयोध्या लौटने की बजाय खुद वन जाने और राम को अयोध्या वापस लाने का प्रस्ताव रखते हैं। इस प्रस्ताव ने न केवल राम, लक्ष्मण और सीता को, बल्कि देवताओं को भी असमंजस में डाल दिया। भरत का यह त्याग, जो उनके चरित्र का परिचायक है, दर्शाता है कि वे केवल अयोध्या के सिंहासन के लिए नहीं, बल्कि आदर्शों और त्याग के प्रतीक के रूप में बने थे।

राम-भरत संवाद: धर्म और कर्तव्य की प्रेरणा

इस महान प्रसंग में भरत श्रीराम से कहते हैं कि वे अयोध्या लौटें और राजसिंहासन ग्रहण करें। भरत स्वयं वन जाने के लिए तैयार थे। भरत का यह कथन कि वे लक्ष्मण और शत्रुघ्न को वापस भेजकर श्रीराम के साथ वन में रहेंगे, उनके चरित्र की महानता को उजागर करता है। राम, जो धर्म और कर्तव्य के प्रतीक हैं, भरत के इस त्याग को देखकर उनके प्रति और भी श्रद्धा से भर जाते हैं।

श्रीराम भरत को समझाते हैं कि वे अपने माता-पिता और गुरुओं का आदर करें और अयोध्या लौटकर राज्य की बागडोर संभालें। भरत का अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करना और श्रीराम से यह कहना कि वे राजतिलक की सभी सामग्री साथ लाए हैं, इस पूरे प्रसंग को अत्यधिक भावनात्मक बना देता है। भरत की विनम्रता और श्रीराम की स्नेहपूर्ण समझाइश दोनों ही रामायण के इस महान प्रसंग को अनमोल बना देती हैं।

जनक का आगमन, पितृ भाव का उद्रेक

भरत के त्याग के बाद जनक का आगमन होता है, जो अपनी पुत्री सीता और राम को कुटिया में देखकर व्याकुल हो उठते हैं। गुरु वशिष्ठ जनक को समझाते हैं और उनके मन को शांति प्रदान करते हैं। इस प्रसंग में जनक और सुनयना का संवाद, विशेष रूप से सुनयना द्वारा तीनों रानियों से मिलना और अपनी पुत्री सीता को गले लगाना, दर्शकों को भावुक कर देता है। जनक और वशिष्ठ के संवाद में भी परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य और धर्म का आदर्श झलकता है।

बारिश से लीला हुई 20 मिनट बाधित

इस महत्वपूर्ण प्रसंग के दौरान बारिश ने लीला को करीब 20 मिनट तक बाधित किया, लेकिन इसके बाद मंचन पुनः शुरू हुआ। इस दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं ने धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की और लीला के पुनः प्रारंभ होते ही भक्ति और उत्साह से भर गए।

आरती के साथ लीला को दिया गया विश्राम

जनक और वशिष्ठ के संवाद और राम-भरत के त्यागपूर्ण प्रसंगों के बाद रात बीत गई, और आरती के साथ लीला को विश्राम दिया गया। रामनगर की रामलीला में इस दिन का मंचन यह दर्शाता है कि पारिवारिक आदर्श और त्याग केवल उस समय ही नहीं, बल्कि आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायी हैं।

रामनगर की रामलीला, अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण, न केवल भारत बल्कि विश्वभर में विख्यात है। इसमें प्रस्तुत किए गए प्रसंग दर्शकों को रामायण के आदर्शों और मूल्यों से जोड़ते हैं, जिससे वे जीवन में धर्म, कर्तव्य और त्याग का महत्व समझ पाते हैं।

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