रामनगर की रामलीला: भरत और श्रीराम के मिलन ने छलकीं भक्तों की आंखें, बरसात से चतुरंगिणी सेना की सलामी पर असर
वाराणसी, रामनगर: विश्वविख्यात रामलीला का हर दृश्य जब मंचित होता है, तो वह केवल एक नाटक नहीं, बल्कि आस्था और पौराणिकता का जीवंत चित्रण बन जाता है। रामलीला के तेरहवें दिन जिस प्रकार से भरत और श्रीराम का मिलन हुआ, उसने उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। यह लीला केवल एक मंचन नहीं, बल्कि धर्म, प्रेम, और त्याग की अद्वितीय प्रस्तुति थी, जो दर्शकों की आस्था को और अधिक गहराई में ले जाती है।
भरत का त्याग और लक्ष्मण का क्रोध, धर्म और प्रेम की पराकाष्ठा
इस दृश्य में भरत और श्रीराम के बीच का भातृ प्रेम और लक्ष्मण के मन में उपजे संदेह का चित्रण किया गया। भरत, जो त्याग और भातृ प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं, अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ श्रीराम से मिलने के लिए चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं। भरद्वाज मुनि के आश्रम से भरत के प्रस्थान से ही इंद्र को भय होता है कि भरत राम को वापस अयोध्या ले जाने का प्रयत्न करेंगे और उनके सारे प्रयोजन विफल हो जाएंगे। यह प्रसंग दर्शाता है कि पौराणिक कथाओं में न केवल राजनैतिक और धार्मिक कथानक चलते थे, बल्कि देवताओं के भी अपनी चिंताएं होती थीं।
चित्रकूट की ओर बढ़ते हुए भरत अपनी सेना के साथ राम के बारे में पूछताछ करते हुए पयस्वनी नदी के किनारे पहुंचते हैं। उधर, सीता जी एक सपना देखती हैं, जिसमें भरत को आते हुए देखती हैं। इसी बीच, लक्ष्मण को जब भरत की विशाल सेना का आगमन दिखाई देता है, तो उनके मन में शंका उत्पन्न होती है। लक्ष्मण का स्वभाव उग्र है, और वह तुरंत भरत के राजमद में आकर युद्ध करने की संभावना पर विचार करने लगते हैं।
लक्ष्मण की इस शंका और क्रोध का एक गहन पौराणिक महत्व है। वेद और पुराण हमें सिखाते हैं कि बिना विचार किए जल्दबाजी में लिया गया निर्णय हमेशा पछतावे का कारण बनता है। यही सन्देश इस प्रसंग में लक्ष्मण के माध्यम से दिया गया है। जब लक्ष्मण युद्ध के लिए तत्पर होते हैं, तब आकाशवाणी होती है कि “जल्दबाजी में किए गए कार्य का परिणाम सदैव दुखदायी होता है।” यह सुनकर श्रीराम लक्ष्मण को समझाते हैं कि भरत में राजमद का कोई स्थान नहीं है, और वे केवल प्रेम और कर्तव्य के प्रतीक हैं।
भरत-राम का मिलन, भातृ प्रेम की अद्वितीय कथा
भरत जब श्रीराम से मिलने के लिए आगे बढ़ते हैं और उन्हें देखते ही “पाहि नाथ पाहि गोसाईं” कहते हुए उनके चरणों में गिर पड़ते हैं, तब इस दृश्य ने श्रद्धालुओं के हृदय को छू लिया। यह दृश्य केवल एक मंचन नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और भक्ति का सजीव चित्रण था। राम नंगे पांव दौड़कर भरत को उठाते हैं और उन्हें गले से लगा लेते हैं। इस दृश्य को देखकर उपस्थित दर्शकों की आंखें छलक उठती हैं, और प्रेम का यह भावुक दृश्य समस्त भक्तों के दिलों में घर कर जाता है।
इस मिलन के बाद कैकेई की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। जब श्रीराम अपनी माता कैकेई को उदास खड़े देख, उन्हें समझाते हैं कि “माता, यह संसार ईश्वर के अधीन है, और किसी को इसके लिए लज्जित होने की आवश्यकता नहीं है।” यह संदेश केवल माता-पुत्र के संवाद तक सीमित नहीं रहता, बल्कि एक गहन पौराणिक सत्य को उजागर करता है कि सभी घटनाएं ईश्वर की मर्जी के अनुसार घटित होती हैं। यह प्रसंग केवल पौराणिक कथाओं का विवरण नहीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सत्य को हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
चतुरंगिणी सेना की सलामी पर असर
रामलीला के इस अद्वितीय आयोजन में हर साल की तरह इस बार भी चतुरंगिणी सेना का विशेष महत्त्व था। हालांकि, भारी वर्षा के कारण इस बार पीएसी की सशस्त्र टुकड़ी द्वारा चतुरंगिणी सेना को सलामी नहीं दी जा सकी, जो इस लीला की प्रमुख परंपराओं में से एक है। चतुरंगिणी सेना का जिक्र आते ही भक्तों के मन में पौराणिक युग की यादें ताजा हो जाती हैं, जहां हाथी, घोड़े, रथ, और पैदल सेना का एक विशाल संगम युद्ध के लिए तैयार खड़ा होता था। यह प्रतीक न केवल उस समय की सैन्य शक्ति का था, बल्कि राजा और उनके सेनापतियों के अनुशासन और उनके धर्म के प्रति समर्पण का भी था।
बरसात की वजह से इस बार की रामलीला में कुछ रुकावटें जरूर आईं, लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं के उत्साह और आस्था में कोई कमी नहीं आई। यह आयोजन रामनगर की समृद्ध परंपरा का हिस्सा है, और चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, रामलीला का मंचन यहां पूरी भव्यता और श्रद्धा के साथ किया जाता है।
रामनगर की रामलीला: आस्था और संस्कृति का मिलन
रामनगर की रामलीला केवल एक नाटक नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा है, जो सदियों से चलती आ रही है और लाखों श्रद्धालुओं के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए है। इस लीला का आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह आयोजन भारत के सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसमें आस्था की गहन अनुभूति होती है।
रामलीला के इस दृश्य में भरत का त्याग, श्रीराम का अटूट विश्वास और लक्ष्मण की शंका, तीनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। यह दिखाता है कि भले ही परिस्थितियाँ कैसी भी हों, सच्चा धर्म और प्रेम हमेशा विजय पाता है।
रामनगर की यह ऐतिहासिक रामलीला विश्वभर में प्रसिद्ध है, और इसके हर प्रसंग में पौराणिक संस्कृति और आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। यह आयोजन केवल धार्मिक कथा का मंचन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, पौराणिकता और जीवन के उच्च आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है।
अद्वितीय आयोजन
रामनगर की रामलीला का यह अद्वितीय आयोजन आस्था, प्रेम, और त्याग का ऐसा अद्भुत संगम है, जो हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को यहां खींच लाता है। यह लीला न केवल रामायण के प्रसंगों को मंचित करती है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करती है। राम और भरत के इस मिलन का दृश्य इस बात का प्रतीक है कि सच्चा प्रेम और भक्ति कभी भी विफल नहीं होते।