रामनगर की रामलीला: रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई, भरत ने श्रीराम का खड़ाऊं सिंहासन पर स्थापित किया, खुद नंदीग्राम निवास
रामनगर, वाराणसी: ऐतिहासिक रामलीला में 14वें दिन का मंचन अद्वितीय भक्ति और समर्पण का प्रतीक बना। पौराणिक कथा के इस महत्त्वपूर्ण प्रसंग में श्रीराम के वनवास और भरत के त्याग का सजीव चित्रण हुआ। भरत, जिन्होंने अयोध्या के राजसिंहासन को त्यागकर श्रीराम के खड़ाऊं को ही राजा मान लिया, अपनी भक्ति और समर्पण से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ गए।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब श्रीराम वनवास के लिए निकले, तब भरत ने अयोध्या की राजगद्दी को स्वीकारने से मना कर दिया। उनका प्रेम और समर्पण ऐसा था कि उन्होंने श्रीराम के खड़ाऊं को सिंहासन पर स्थापित कर, नंदीग्राम में कुटिया बनाकर रहने का निर्णय लिया। रामलीला में इस प्रसंग का मंचन होते ही भक्तिभाव से भरे दर्शकों के बीच गहरी आस्था की लहर दौड़ गई।
श्रीराम और भरत के बीच संवादों में रघुकुल की परंपराओं और मर्यादाओं को निभाने की शिक्षा दी गई। श्रीराम ने भरत को समझाते हुए कहा, “रघुकुल की रीति है कि प्राण जाए, पर वचन का पालन हो।” इस संवाद ने दर्शकों को रघुकुल की महान परंपराओं और वचन पालन की महत्ता का स्मरण कराया।
भरत, जो राम के बिना अयोध्या में रहना असहनीय मानते थे, श्रीराम से उनकी खड़ाऊं मांगकर नंदीग्राम चले गए। उन्होंने श्रीराम के खड़ाऊं को अयोध्या की गद्दी पर विधिवत स्थापित किया और खुद नंदीग्राम में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। यह दृश्य रामलीला के मंचन में भरत के त्याग और धर्मपालन की अद्वितीय मिसाल पेश करता है।
सांस्कृतिक रूप से, रामनगर की रामलीला का यह मंचन न केवल रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों को जीवंत करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे लोगों की आस्था, श्रद्धा और संस्कृति इन कहानियों में गहराई से बसी हुई है। इस रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से आए लोग अपनी धार्मिक भावनाओं को और भी मजबूत महसूस करते हैं। भरत की इस लीला के साथ, रामलीला के इस हिस्से का समापन हुआ और आने वाले दिनों में रामायण के अन्य महत्वपूर्ण प्रसंगों की प्रतीक्षा बनी रही।
रामनगर की रामलीला का यह मंचन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का भी महत्वपूर्ण माध्यम है। इस पावन अवसर पर, दर्शकों ने भरत और राम के चरित्रों से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन में धर्म, सत्य और कर्तव्यपालन के आदर्शों को अपनाने का संकल्प लिया।