पीठ पीछे की बातें: नकारात्मकता की चाशनी में शब्दों को डुबोकर मिठाई की तरह पेश करने वाली बिरादरी
व्यंग्य
जब हम लोग किसी की पीठ पीछे बातें करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम एक ऐसे रियलिटी शो का हिस्सा हैं, जिसमें नायक तो हमेशा दूसरे होते हैं, लेकिन दर्शक हम खुद ही होते हैं। ये वो अद्भुत नाटक है, जिसमें हर कोई महान अभिनेता है, लेकिन कोई भी खुद को देखकर खुश नहीं है।
आपने देखा होगा, जैसे ही कोई किसी की पीठ पीछे बुराई करना शुरू करता है, उसका चेहरा ऐसा होता है जैसे उसने कोई बहुत बड़ा राज उजागर किया हो। आंखें चौड़ी, चेहरे पर गंभीरता, और बुरी खबर देने की एक खास आदत, जैसे वो कोई समाचार पत्र जो केवल नकारात्मकता फैलाने के लिए बना हो।
अजीब है, जब हम किसी की पीठ पीछे बुराई करते हैं, तो हमारा ऐसा मानना होता है कि हम एक पवित्र मिशन पर हैं। हमें ये लगता है कि हम समाज के रक्षक हैं, जो एक ‘धोखेबाज’ को सबके सामने लाने का कार्य कर रहे हैं। पर असल में हम तो बस उसी ‘धोखेबाज’ के लिए हंसी का एक नया स्रोत बन रहे होते हैं।
क्या आप जानते हैं कि ऐसा करते हुए हम अपनी बुद्धि को कितनी कमतर समझते हैं? जैसे हमने नकारात्मकता की एक चाशनी में अपने शब्दों को डुबोकर, उसे मिठाई की तरह पेश कर दिया हो। लेकिन सच तो ये है कि वो मीठी चाशनी सिर्फ हमारे मुंह को स्वादिष्ट लगती है और उसके बाद बस पछतावा रह जाता है।
तो अगली बार जब आप किसी की पीठ पीछे बातें करें, तो एक बार सोचिए- क्या आप सच में उसके विषय में कह रहे हैं, या खुद को ही? शायद, अगली बार आपको अपने शब्दों को सीधे उनके सामने रखने की हिम्मत दिखानी चाहिए, क्योंकि पीठ पीछे की बुराई का नतीजा सिर्फ आपके चेहरे पर ही नहीं, बल्कि आपके व्यक्तित्व पर भी असर डालता है।
आखिरकार, पीठ पीछे बुराई करने वाले तो वही होते हैं, जो खुद के बारे में सोचते हैं- “क्यों न मैं भी थोड़ा सा ‘खुद को महान’ दिखा दूं?” लेकिन असल में, ये तो खुद को ‘असली’ नजर से देखने का एक मौका है, जो वो हमेशा गंवा देते हैं।