ऑफिस की अद्भुत दुनिया: मीटिंग मतलब वो समय जब सब लोग एक ही टेबल पर होते हैं, लेकिन दिमाग छुट्टी पर जा चुका होता है
व्यंग्य
ऑफिस, यह वह जगह है जहां आपकी मेज पर जितनी फाइलें होती हैं, उससे कहीं ज्यादा आपकी किस्मत में चाय और कॉफी के कप होते हैं। दिन की शुरुआत “जल्दी काम खत्म कर लेंगे” वाली सोच से होती है, और अंत में आप किसी टारगेट को अधूरा छोड़कर अगले दिन पर टाल देते हैं।
पहले दिन जब आप ऑफिस आते हैं, तो आपकी आंखों में चमक होती है, उम्मीदें होती हैं। लेकिन धीरे-धीरे समझ में आता है कि यहां चमकदार आंखें सिर्फ प्रेजेंटेशन स्लाइड्स के बैकग्राउंड के लिए ही हैं। “अरे यार, इस बार प्रेजेंटेशन आप ही कर लो” की दया से भरी आवाजें हर दिन का हिस्सा बन जाती हैं।
फिर आते हैं, वो ईमेल्स जिनमें बॉस की तरफ से “पिछले हफ्ते जो प्रोजेक्ट सौंपा था, उसकी स्टेटस रिपोर्ट कब तक मिलेगी?” का सवाल होता है। और आपका जवाब हमेशा की तरह यही होता है, “आज शाम तक भेज दूंगा सर!” जबकि आप खुद सोच रहे होते हैं, “शाम तक घर पहुंच पाऊं, वही बड़ी बात है।”
लंच टाइम की बात करें तो, ऑफिस के डिब्बों से दुनिया भर की सुगंधें आती हैं, लेकिन जैसे ही आप अपना टिफिन खोलते हैं, उसमें सिर्फ रोटियां और सब्जी की बदकिस्मत जोड़ी नजर आती है। आप आस-पास बैठे लोगों के टिफिन की तरफ वैसे ही ताकते हैं, जैसे कोई बच्चा मिठाई की दुकान के शीशे से अंदर झांकता है।
और फिर आता है मीटिंग का समय। मीटिंग मतलब वो समय जब सब लोग एक ही टेबल पर बैठे होते हैं, लेकिन दिमाग छुट्टी पर जा चुका होता है। बॉस अपने सपनों के बारे में बता रहे होते हैं, और हम अपनी कुर्सियों पर झूलते हुए बस यह सोचते हैं कि चाय कब आएगी।
ऑफिस के हाई-फाई शब्दों जैसे “स्ट्रैटेजिक अलाइनमेंट,” “सिनर्जी,” और “टच बेस” सुनते-सुनते कब लंच टाइम हो जाता है, पता ही नहीं चलता। और सबसे मजेदार होता है जब अकाउंट्स डिपार्टमेंट से मेल आता है कि “क्लेम किए गए बिलों का विवरण स्पष्ट नहीं है, कृपया पुनः जमा करें।” अब बताइए, ऑफिस में काम तो एक बार हो सकता है, लेकिन क्लेम फॉर्म सही से भरना, यह किसी कला से कम नहीं है। अंत में, ऑफिस वो जगह है जहां आपकी कुर्सी घुमती है, लेकिन आपकी किस्मत नहीं।