क्वालिटी टेस्ट का महामुकाबला: आज हम असली मतलब समझेंगे, उन्होंने अपने मोटे चश्मे के ऊपर से देखा और कहा
ओमप्रकाश चौधरी
व्यंग्य
सुबह का समय था और ऑफिस के गलियारे में एक अजीब हलचल थी। आज क्वालिटी टेस्ट होने वाला था। कंपनी के कर्मचारियों की आंखों में न डर था, न उत्साह- बस एक मौन विद्रोह जैसा भाव। हमारे बॉस, जिन्हें हम प्यार से ‘क्वालिटी देवता’ बुलाते हैं, अपनी सटीक नजर और हर चीज में मीनमेख निकालने की आदत के लिए जाने जाते थे।
बॉस का प्रवेश हुआ। चेहरे पर वही हमेशा की हिटलरी मुस्कान, जैसे अभी सभी कर्मचारियों को किस्मत के दरवाजे पर धकेल देंगे। “आज हम क्वालिटी का असली मतलब समझेंगे,” उन्होंने अपने मोटे चश्मे के ऊपर से देखा और कहा। सभी ने एक दूसरे की तरफ देखा, जैसे कह रहे हों, “असली मतलब? क्या पिछले टेस्ट नकली थे?”
जैसे ही क्वालिटी देवता ने अपना भाषण खत्म किया, पहला उम्मीदवार रामू कुर्सी पर बैठा। उसके सामने एक कप कॉफी रखी गई। बॉस ने उसे पीने का आदेश दिया।
रामू ने कप उठाया, एक सिप लिया और बॉस की तरफ देखा। “कैसा है?” बॉस ने पूछा।
“सर, कॉफी तो बढ़िया है, लेकिन इसमें थोड़ी चीनी ज्यादा है।”
बस, यही सुनना था। बॉस की भृकुटि चढ़ गई। “अरे! तुम कॉफी पीने आए हो या क्वालिटी टेस्ट देने? तुम्हारी नौकरी इस कप पर टिकी है और तुम इसे सिर्फ ‘ठीक’ कह रहे हो?”
रामू के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। उसने तुरंत खुद को सुधारने का प्रयास किया, “सर, मेरा मतलब था यह अद्वितीय है, सर! ऐसा स्वाद तो मैंने कभी नहीं चखा।”
बॉस मुस्कुराए, “अब आया स्वाद!” रामू को राहत की सांस लेते देखा गया।
अगला उम्मीदवार श्यामलाल था। उसे टेस्ट के लिए एक रिपोर्ट दी गई। बॉस ने आदेश दिया, “इसकी क्वालिटी बताओ।”
श्यामलाल ने रिपोर्ट को गौर से देखा और बोला, “सर, रिपोर्ट में तो सब कुछ सही लग रहा है।”
बॉस की मुस्कान गहरी हो गई, “सही? सही होना ही तो सबसे बड़ी गलती है। अगर सब सही है, तो तुम यहां क्यों हो?”
श्यामलाल की आंखें फटी रह गईं। “सर, मेरा मतलब था कि इस रिपोर्ट में सुधार की अपार संभावनाएं हैं।”
“यही तो मैं सुनना चाहता था!” बॉस ने प्रसन्नता से कहा।
इसी बीच, ऑफिस के सबसे होशियार कर्मचारी, मोहन, को बुलाया गया। उसे दिया गया एक बिस्किट और पूछा गया, “इसकी क्वालिटी पर टिप्पणी करो।”
मोहन ने बिस्किट उठाया, उसे सूंघा, फिर छोटे से टुकड़े को चखा और बोला, “सर, यह बिस्किट उत्कृष्ट है। इसका बनावट और स्वाद दोनों अद्वितीय हैं।”
बॉस ने गहरी नजरों से उसकी तरफ देखा, “और वजन?”
“वजन?” मोहन ने चौंकते हुए पूछा।
“हां, वजन! क्या तुमने इसकी गुणवत्ता को बिना वजन के मापा?” बॉस गरजे। मोहन को काटो तो खून नहीं। उसे समझ ही नहीं आया कि बिस्किट का वजन भी कोई क्वालिटी पैरामीटर हो सकता है।
फिर बॉस ने कहा, “तुम सबको क्वालिटी के बारे में पता ही नहीं है। जब तक चीज में कमी न निकालो, वह क्वालिटी टेस्ट पास नहीं कर सकता।”
आखिर में, बॉस ने अपना निष्कर्ष दिया: “क्वालिटी का मतलब है कभी संतुष्ट न होना। जब तक हर चीज में कमी नहीं दिखती, समझो तुम क्वालिटी टेस्ट में फेल हो।”
इस प्रकार, क्वालिटी टेस्ट का महामुकाबला अपने अजीबोगरीब निष्कर्ष पर पहुंचा। कर्मचारी समझ नहीं पाए कि उन्होंने क्या सीखा, लेकिन एक बात तो तय थी- क्वालिटी के चक्कर में कभी संतुष्ट मत होना, नहीं तो बॉस की नजरों में ‘क्वालिटी’ की कसौटी पर फेल हो जाओगे।