पितृपक्ष 2024: तिथियां और आध्यात्मिक महत्ता, इस तारीख को है सर्वपितृ अमावस्या
नई दिल्ली: इस वर्ष पितृपक्ष 29 सितंबर 2024 से शुरू होकर 14 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो रहा है। पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण समय माना जाता है। यह अवधि पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से समर्पित है। इस दौरान, परिवार के लोग अपने पितरों (पूर्वजों) के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं।
आध्यात्मिक मान्यता
हिन्दू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितर पृथ्वी पर आते हैं और उनके लिए किए गए श्राद्ध कर्म से उन्हें शांति मिलती है। इसके पीछे यह धारणा है कि हर व्यक्ति पर उसके पितरों का ऋण होता है, जिसे पितृऋण कहा जाता है। पितरों के प्रति इस ऋण को चुकाने के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किया जाता है।
पितृपक्ष के समय पूर्वजों की आत्मा को प्रसन्न करने के लिए उनके नाम पर भोजन दान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कर्मों से पितर तृप्त होते हैं और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। साथ ही, जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए भी पितृपक्ष एक उत्तम अवसर होता है, क्योंकि इस समय किए गए श्राद्ध कर्म पितृ दोष को समाप्त करने में सहायक माने जाते हैं।
पितृपक्ष के प्रमुख अनुष्ठान
- तर्पण: यह जलांजलि का एक रूप है, जिसमें पवित्र जल को पितरों के नाम पर अर्पित किया जाता है।
- पिंडदान: इस कर्म के अंतर्गत चावल, तिल और जौ से बने पिंडों को अर्पित किया जाता है, जो पितरों को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता करते हैं।
- दान: पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान की जाती हैं।
श्राद्ध का महत्व
शास्त्रों में यह कहा गया है कि श्राद्ध कर्म करने से न केवल पितर संतुष्ट होते हैं, बल्कि यह वंशजों की सुख-समृद्धि के लिए भी अत्यंत फलदायी होता है। पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। यह भी कहा जाता है कि इस समय अगर सही विधि से श्राद्ध कर्म न किए जाएं, तो पितरों की आत्मा अशांत रह सकती है, जिसका प्रभाव वंशजों पर भी पड़ता है।
कब और कैसे करें श्राद्ध कर्म?
पितृपक्ष में प्रत्येक दिन का संबंध किसी न किसी तिथि के अनुसार पितरों से होता है। परिवार के दिवंगत सदस्य की मृत्यु जिस तिथि को हुई थी, उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है। अगर तिथि ज्ञात न हो, तो अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध कर्म के दौरान भोजन बनाकर उसे पंचबलि के रूप में पितरों को अर्पित किया जाता है, जिसमें गाय, कुत्ता, कौआ और चींटी को भोजन खिलाना भी शामिल होता है। श्राद्ध में पवित्रता और श्रद्धा का विशेष महत्व होता है।
पितृपक्ष की तिथियां 2024:
- आरंभ: 29 सितंबर 2024
- समापन: 14 अक्टूबर 2024 (सर्वपितृ अमावस्या)