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जीवित्पुत्रिका व्रत 2024: माताओं का पर्व, संतान के जीवन की कामना

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका पर्व के नाम से भी जाना जाता है, हर साल आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह विशेष पर्व माताओं द्वारा अपनी संतान के जीवन और समृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन माताएँ उपवासी रहकर विशेष पूजा-अर्चना करती हैं और अपने बच्चों के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हैं।

इस पर्व के दौरान महिलाएँ व्रत के नियमों का पालन करते हुए विशेष रूप से पूजा सामग्री एकत्र करती हैं। इस दिन विशेष रूप से ‘जीवित्पुत्रिका’ की पूजा की जाती है, जिसमें महिलाएँ मिट्टी की एक आकृति बनाकर उसे वस्त्र पहनाती हैं और फिर उसका पूजन करती हैं। इसके बाद वे संतान के जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। पूजा के बाद माताएँ इस आकृति को नदी या तालाब में विसर्जित करती हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह माताओं के लिए एक ऐसा अवसर है जब वे अपने बच्चों के प्रति अपनी अनंत प्रेम और समर्पण का इजहार करती हैं। इस अवसर पर समाज में भी एकजुटता का भाव देखने को मिलता है, जहां माताएँ एक-दूसरे के साथ मिलकर इस पर्व को मनाती हैं।

मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित की जाती है, जिसमें महिलाएँ एकत्र होकर सामूहिक रूप से इस पर्व की महत्ता का बोध कराती हैं। इस पर्व की धूमधाम बढ़ने के साथ ही, धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक समारोह भी आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे यह पर्व और भी जीवंत बन जाता है।

इस प्रकार जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं की आस्था का प्रतीक है, जो संतान के कल्याण और समृद्धि की कामना के साथ मनाया जाता है।

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