शारदीय नवरात्रि 2024: तृतीया को होती है मां चंद्रघंटा की उपासना, आसुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं माता, जानिए पूजन विधि
पंडित लोकनाथ शास्त्री
नवरात्रि की तृतीया को होती है देवी चंद्रघंटा की उपासना। मां चंद्रघंटा का रूप बहुत ही सौम्य है। मां को सुगंधप्रिय है। उनका वाहन सिंह है। उनके दस हाथ हैं। हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र हैं। वे आसुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं।
मां चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है। उनको सौभाग्य, शांति और वैभव की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा का उपासना मंत्र-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादे तनुते मां चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
महामंत्र – ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’
देवी चन्द्रघण्टा बाघिन की सवारी करती हैं। ये मस्तक पर अर्धवृत्ताकार चन्द्रमा धारण करती हैं, जो अर्धचन्द्र घंटे के समान प्रतीत होता है। इसी कारण देवी माता को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। देवी चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली हैं।
इनके चार बाएं हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार तथा कमण्डलु रहता है और पांचवाँ बायां हाथ वर मुद्रा में रहता है। वहीं चार दाहिने हाथों में कमल पुष्प, तीर, धनुष और जप माला धारण करती हैं, जबकि पांचवें दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं।
देवी पार्वती का यह रूप शांतिपूर्ण और भक्तों का कल्याण करने वाला है। इस रूप में देवी चंद्रघंटा अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित युद्ध के लिए तैयार रहती हैं।
मान्यता के अनुसार, उनके मस्तक पर विद्यमान चन्द्र-घंटी की ध्वनि उनके भक्तों की समस्त प्रकार की शक्तियों से रक्षा करती हैं। इन देवी का प्रिय पुष्प चमेली है।
आइए जानते हैं पूजा और आरती से जुड़ी कुछ विशेष जानकारी
आरती में चढ़ाये गये द्रव्य को आचार्य को देना चाहिए। नापित (नाई) पूजन या आरती में प्रयुक्त दक्षिणा का अधिकारी नहीं होता उसे केवल न्योछावर ग्राह्य है।
आर्तिक्ये तु यद् द्रव्यं, आचार्यं तन्निवेदयेत्। मोहाद् नापिते दत्त्वा, पूजापुण्याच्च्युतो भवेत्।।