बड़ी बोल सबसे अलग 

काम का दिखावा करने वाले: दिखावा भी एक हुनर है, और हुनर का सम्मान होना चाहिए, नहीं?

व्यंग्य हमारे चारों ओर एक खास किस्म के लोग होते हैं जो अपने काम करने की कला से ज्यादा, काम का दिखावा करने में महारत हासिल रखते हैं। ये वो लोग होते हैं जो दिन भर “बहुत व्यस्त हूं” का नारा लगाते रहते हैं, लेकिन असल में उनके पास दिखाने के लिए काम की जगह सिर्फ बातें होती हैं। सुबह ऑफिस पहुंचते ही ये लोग सबसे पहले एक गंभीर चेहरा बना लेते हैं, मानो दुनिया का सारा भार उन्हीं के कंधों पर हो। टेबल पर फैली फाइलें और कंप्यूटर स्क्रीन…

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तेजी दिखाने वाले धीमे लोग: ये वाली प्रजाति सबसे अलग, बातों में ‘रॉकेट’, काम में ‘कछुआ’

व्यंग्य तेजी दिखाने वाले धीमे लोगों की एक अलग ही प्रजाति होती है। ये वो लोग होते हैं, जो बातों में तो ‘रॉकेट’ होते हैं, लेकिन काम में ‘कछुआ’। चाहे बस पकड़नी हो, या फिर ऑफिस की मीटिंग में पहुंचना हो, ये लोग ऐसे फूर्ती से निकलते हैं, जैसे दुनिया का सारा काम इन्हीं पर टिका हो। मगर, असलियत में ये आलस्य की ऐसी मिसाल होते हैं, जो ‘आज का काम कल पर’ छोड़ने में विश्वास रखते हैं। घर में मां ने कहा, “बेटा, सब्जी लेने जाओ,” तो ऐसे दौड़ते…

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स्वार्थी लोग: जैसे एकल नाटक चल रहा हो, वो खुद को प्रैक्टिकल मानते हैं, भले ही बाकी दुनिया उन्हें…

व्यंग्य हमारे समाज में स्वार्थी लोगों की कोई कमी नहीं है। ये लोग वो होते हैं, जो हर वक्त केवल अपनी भलाई के बारे में सोचते हैं और बाकी दुनिया का उन्हें कोई परवाह नहीं होता। अगर आप सड़क पर गिर जाएं, तो ये आपको उठाने के बजाय आपके जूते की ब्रांड देखकर कॉपी करने की सोचेंगे। स्वार्थी लोग अपनी जिंदगी को इस तरह चलाते हैं, जैसे कि वे किसी एकल नाटक के मंच पर हों, जिसमें बाकी लोग केवल बैकग्राउंड का हिस्सा हैं। इन्हें लगता है कि पूरी दुनिया…

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झूठ बोले कौवा काटे: और झूठ भी ऐसे कि सत्य खुद ही आकर कहे, भाई, तू ही सही है, मैं तो झूठा हूं

व्यंग्य झूठ बोलना आजकल एक ऐसी कला हो गई है, जिसमें लोग बिना किसी प्रशिक्षण के महारथ हासिल कर लेते हैं। बचपन में हम सबने वो कहावत सुनी थी- “झूठ बोले कौवा काटे” लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर कौवे ने कब, किसे और कहां काटा? आज के दौर में तो कौवे शायद खुद भी सोच रहे होंगे कि किस-किस को काटें? आखिर इतने सारे झूठों के बीच उनका भी धैर्य जवाब दे गया होगा। पहले जमाने में जब कोई झूठ बोलता था, तो चेहरे पर हल्की शर्म, और…

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भ्रम पालने की महान कला: आइए महारत हासिल करें, दुनिया को वास्तविकता से चकित करें

व्यंग्य भ्रम पालना एक ऐसी कला है, जिसमें महारत हासिल कर लो तो आपकी जिंदगी शानदार ढंग से “हवाई किले” में बदल सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको किसी सच्चाई से कभी टकराने की जरूरत ही नहीं पड़ती। और हम भारतीय तो इस कला में जन्मजात विशेषज्ञ होते हैं। बनारस के एक मोहल्ले के शर्मा जी को ही ले लीजिए। उन्हें पूरा यकीन है कि उनके बेटे में एपीजे अब्दुल कलाम बनने की सारी संभावनाएं हैं, जबकि बेचारा बेटा अपनी 12वीं की परीक्षा में सिर्फ दया…

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खुद को व्यस्त दिखाने वाले लोग: ‘अति व्यस्त’ नामक प्रजाति का अनोखा जीव, दिखावे से हकीकत इतर

व्यंग्य इस दुनिया में एक ऐसी भी प्रजाति है, जो हमेशा खुद को बेहद व्यस्त दिखाने में लगी रहती है। इन्हें हम ‘अति व्यस्त’ प्रजाति के नाम से जानते हैं। इनके हाथ में मोबाइल, कान में ईयरफोन और माथे पर चिंताओं की गहरी लकीरें साफ देखी जा सकती हैं, जो हर समय यह जताने का प्रयास करती हैं कि इनसे ज्यादा व्यस्त कोई नहीं है। इन महानुभावों से जब भी बात करने की कोशिश कीजिए, जवाब मिलेगा, “यार, अभी बहुत बिजी हूं, बाद में बात करता हूं।” जबकि हकीकत में…

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आधुनिक औरतों के नखरे: एक अलग ग्रह की प्रजाति, पास होती है नखराशास्त्र की डिग्री

व्यंग्य आजकल की औरतों को देखकर लगता है कि वे किसी दूसरे ग्रह से आई हैं, जहां नखरे, स्वाभिमान और स्टाइल को जीवन के सबसे अहम हिस्सों के रूप में सिखाया जाता है। यकीन मानिए, ये औरतें सामान्य नहीं हैं। इनके नखरे आपकी सोच से कहीं ज्यादा गहरे और जटिल हैं, और कभी-कभी तो लगता है कि इन्होंने डिग्री सिर्फ “नखराशास्त्र” में ली है। “क्या?” से “कुछ नहीं” तक का सफर आधुनिक औरतों का सबसे बड़ा हथियार है उनकी संवाद शैली। सवाल करें, “क्या हुआ?” और जवाब मिलेगा, “कुछ नहीं!”।…

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फुटपाथ और सड़क के अतिक्रमण: एक अनिवार्य अनुष्ठान, सिर्फ पुलिस की नजरों से बचना जरूरी

व्यंग्य महानगरों के सबसे महत्वपूर्ण तीज-त्योहारों में से एक है ‘अतिक्रमण पर्व’, जिसमें हर नागरिक अपनी क्षमताओं का परिचय देते हुए सड़क और फुटपाथ पर कब्जा जमाने का अद्वितीय अवसर पाता है। फुटपाथ और सड़क पर अतिक्रमण एक ऐसी सामाजिक परंपरा बन चुकी है, जिसे निभाना अब हर नागरिक का कर्तव्य मान लिया गया है। फुटपाथ पर कब्जा जमाने की कला में मास्टर बनने के लिए, आपको बस थोड़ा सा हुनर चाहिए-एक पुरानी कार, कुछ अस्थायी दुकानें, और ज़रा सी चाय की दुकान की बुनियादी सामग्री। यही नहीं, सड़क पर…

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गूगल महाराज की महिमा 2nd पार्ट: एक बार ढ़केलन गुरु ने पूछ लिया था कि सर्दी-जुकाम का इलाज क्या है?

कभी सोचा है, हमारे जमाने का ‘बाबा’ कौन है? ना, वो सफेद दाढ़ी वाले बाबा नहीं, जिन्हें साधु-संत कहते हैं। हमारे युग का बाबा हैं– गूगल बाबा। गूगल बाबा हर जगह हैं, हर सवाल का जवाब रखते हैं, और उनके पास इतना ज्ञान है कि वे खुद भी शायद भूल चुके हैं कि उनके पास कितना कुछ है। अब देखिए, आपको बस हल्दी के फायदे जानने थे, और गूगल बाबा ने आपके सामने 50,000 फायदे और 10,000 नुकसान की लिस्ट डाल दी। बेचारा इंसान अब यही सोचने लगता है कि…

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गूगल महाराज की महिमा: वरना आप सिरदर्द का इलाज ढूंढते-ढूंढते खुद को सर्जन समझने लगेंगे

व्यंग्य कभी सोचा है कि हमारे दादा-नाना, जिनके पास ‘तथ्य’ ढूंढने का साधन सिर्फ मोटी-मोटी किताबें होती थीं, वे कैसे जीते थे? अब जमाना बदल गया है, क्योंकि गूगल महाराज हमारे जीवन में आ चुके हैं। सुबह आंख खुलते ही पहला काम होता है, ‘गूगल करना’। ‘कितनी नींद हो चुकी है’, ‘सपने का क्या मतलब था’, ‘ब्रश कैसे करें’- सब कुछ गूगल बताएगा। गूगल महाराज की खास बात ये है कि आपके हर सवाल का जवाब होता है। चाहे सवाल हो, “चाय को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?” या फिर…

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